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श्रेणिक पुराणम्
प्रेक्षमाणो जनः सर्वैमुखुरैर्जयनादतः । मेने जन्म सुसाफल्यं तया भूभृद्विशांपतिः ॥११२॥ ततो ददौ पदं देव्यै महिष्याः स्नापयन्जलैः । दुंदुभ्यानकनादेन ख्यापयंस्तत्पदं नृपः ।।११३॥ निशांते सप्तभूमं च गवाक्षादि सुतोरणम् । स्वर्णजं रत्नसंबद्ध धरं तस्यै गुहं ददौ ॥११४॥ स शर्म नितरां लेभे कथया कथ्यमानया। गतिवीक्षणतश्चैव मुखालोकनतः क्वचित् ॥११॥ रतिजं हास्यजं शर्म संगजं कुचमर्दनम् । तयोर्नव्यमहारंभयौवनप्रेमबद्धयोः
॥११६॥ चंदनैः क्रीड़नः काव्य रागकोपोपहापनैः । तौ रेमाते महाप्रीतावभिन्न निजजीविनौ ॥११७॥ मारोद्दीपनतत्परौ जितसुरौ संसारसाताब्धिगौ, प्रेमाबद्ध मनोदृशो विशदृशाऽभिप्रायमुक्तौ शुभौ । शक्रक्रीड़न कामिनौ कृत कथा काव्यादिसत्कौशलौ, रेजाते वरभोगसंगमविधौ तौ च प्रसिद्धौ सदा ॥११८।।
विशाला नगरी से जब रथ कुछ दूर निकल आया। कुमारी चेलना को अपने माता-पिता की हुड़क आई। वह उनकी याद कर रुदन करने लगी। किंतु अभयकुमार ने उसे समझा दिया जिससे उसका रुदन शांत हो गया। एवं ये समस्त महानुभाव कुछ दिन बाद आनंदपूर्वक मगध. देश में आ पहुँचे। किसी दूत के मुख से महाराज को यह पता लगा कि कुमार आ रहे हैं उनके साथ कुमारी चेलना भी है। शीघ्र ही बड़ी विभूति से वे कुमार के सामने आये। कुमार के मुख से उन्होंने सारा वृत्तांत सुना । कुमार को छाती से लगा महाराज अति प्रसन्न हुए। कुमार के साथ जो अन्यान्य सज्जन थे, उनके साथ भी महाराज ने अधिक स्नेह प्रकट किया। जिस समय मृगनयनी चंद्रवदनी कुमारी चेलना पर महाराज की दृष्टि गई तो उस समय तो महाराज के हर्ष का पारावार न रहा।
दरिद्री पुरुष जैसा निधि को देख एक विचित्र आनंदानुभव करने लगता है। चेलना को देख महाराज की भी उस समय वैसी ही दशा हो गई।
इस प्रकार कुछ समय वार्तालाप कर सभीजनों ने राजगृह नगर में प्रवेश किया। महाराज की आज्ञानुसार कुमारी चेलना सेठी इन्द्रदत्त के घर उतारी गई। किसी दिन शुभ मुहूर्त एवं शुभ
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