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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
लग्न में महाराज का विवाह हो गया। विवाह के समय समस्त दिशाओं को बधिर करनेवाले बाजे बजने लगे। बंदीजन महाराज की उत्तमोत्तम पद्यों में स्तुति करने लगे। महाराज के विवाह से नगर-निवासियों को अति प्रसन्नता हुई। चेलना के विवाह से महाराज ने भी अपने जन्म को धन्य समझा। विवाह के बाद महाराज ने बड़े गाजे-बाजे के साथ रानी चेलना को पटरानी का पद दिया। एवं राजमंदिर में किसी उत्तम मकान में रानी चेलना को ठहराकर प्रीतिपूर्वक महाराज उसके साथ भोग भोगने लगे। कभी तो महाराज को रानी चेलना के मख से कथा-कौतहल सुन परम संतोष होने लगा, कभी महाराज को रानी चेलना की हंसिनी के समान गति एवं चंद्र के समान मुख देख अति प्रसन्नता हुई, कभी महाराज चेलना के हास्योत्पन्न सुख से सुखी होने लगे, कभी-कभी महाराज को रतिजन्य सखसखी करने लगा.और कभी चेलना के प्रति अंग की सघडाई महाराज को सुखी करने लगी। जिस समय राजा रानी पास में बैठते थे, उस समय इनमें और इन्द्र इन्द्राणी में कुछ भी भेद देखने में नहीं आता था। ये आनंदपूर्वक इन्द्र इन्द्राणी के समान ही भोग-विलास करते थे। रानी चेलना एवं राजा श्रेणिक के शरीर ही भिन्न थे, किंतु मन उनका एक ही था। लोग ऐसा आपसी घनिष्ठ प्रेम देख दोनों को सुख की जोड़ी कहते थे। और बराबर दोनों के पुण्य फल की प्रशंसा करते थे॥१०३-११८॥
क्व चेलना चेटकराजपुत्रिका,
सुमार्गसद्देशनभावसूचिका । क्व मागधो धर्म विदूरमानसः,
क्व सिंधुदेशः क्व च राजमंदिरं ॥११६।। क्व चापहारोऽभयदेवसंकृतः,
सुचेलनायाः क्व च देशमोचनम् । कथं विमोहः परभूपसंभवै
विधेविलासो भुवि दुर्घटो भवेत् ॥१२०॥ करोति मार्ग सुगमं विधिः सताम्
ससन्मुखश्चेत् कुरुतेऽन्यथा पुनः । विविधानं बहुधा समीक्ष्य,
वैकुर्यात्प्रयत्नं विधिसिद्धये पुनः ॥१२१॥
भाग्य की महिमा अनुपम है। देखो कहाँ तो राजा चेटक की पुत्री चेलना? और कहाँ जिनधर्म रहित महाराज श्रेणिक ? कहाँ तो सिंधु देश में विशालपुरी? और राजगृह नगर कहाँ? तथा कहाँ तो अभयकुमार द्वारा चेलना का हरण ? और कहाँ महाराज श्रेणिक के साथ संयोग ? इसलिए मनुष्य को अपने भाग्य पर भी अवश्य भरोसा रखना चाहिए क्योंकि भाग्य में पूर्णतया फल
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