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________________ १५० श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् इस मृगाक्षी चेलना का मुख तो सर्वथा आकाश ही जान पड़ता है। क्योंकि आकाश में जैसे बादल की ललाई, चन्द्र आदि की किरण एवं मेघ की ध्वनि रहती है। वैसी ही इसके मुख में तो पान की ललाई है। दाँतों को किरण चन्द्रकिरण हैं। और इसकी मधुर ध्वनि मेघध्वनि मालम पड़ती है। इसकी यह तीन रेखाओं से शोभित, सोने के रंग की, मनोहर ग्रीवा है। मालूम होता है कोयल ने जो कृष्णत्व धारण किया है। और पुर छोड़ वन में बसी है। सो इस चेलना के कण्ठ के शब्द-श्रवण से ही ऐसा किया है। इस चेलना के दो स्तन ऐसे जान पड़ते हैं मानो वक्षःस्थलरूपी वन में दो अति मनोहर पर्वत ही हैं। मालूम होता है इस चेलना के नाभिरूपी तालाब में कामदेव रूपी हाथी गोता लगाये बैठा है। नहीं तो रोमावलीरूपी भ्रमर पंक्ति कहाँ से आई? इसके कमल के समान कोमल कर अति मनोहर दिखाई पड़ते हैं। कटिभाग भी इसका अधिक पतला है। ये इसके कोमल चरणों में स्थित नूपुर इसके चरणों की विचित्र ही शोभा बना रहे हैं। नहीं मालूम होता ऐसी अतिशय शोभायुक्त यह चेलना कोई किन्नरी है ? वा विद्याधरी है ? किंवा रोहिणी है ? अथवा कमलनिवासिनी कमला है ? या यह इन्द्राणी अथवा कोई मनोहर देवी है ? अथवा इतनी अधिक रूपवती यह नाग-कन्या वा कामदेव की प्रिया रति है? अथवा ऐसी तेजस्विनी यह सूर्य की स्त्री है। तथा इस प्रकार कुछ समय अपने मन में भले प्रकार विचार कर और चेलना के रूप पर मोहित होकर, महाराज ने शीघ्र ही भरत चित्रकार को अपने पास बुलाया। और उससे पूछा-॥३१-५१॥ कस्येयं तनुजा चित्रकृत्का रूपावभासिनी । कथं प्राप्या ततः प्राह भरतो भूपति प्रति ॥ ५२ ।। सिंधदेशे विशालायाः अधीशश्चेटको नृपः । कुमारी तनुजा तस्य चेलना चित्ररोपिता ॥ ५३ ॥ जैनं विहाय नान्यस्मै प्रयच्छति सुकन्यकां । कुरुत्वं च यथाशक्ति वाक्यसारा हि मादृशाः ।। ५४ ॥ कहो भाई ! यह अति सुंदरी चेलना किस राजा की पुत्री है ? किस देश एवं पुर का पालक वह राजा है ? क्या उसका नाम है ? यह कन्या हमें मिल सकती है या नहीं? यदि मिल सकती है तो किस उपाय से मिल सकती है ? ये सभी बातें स्पष्ट रूप से शीघ्र मुझे कहो। महाराज श्रेणिक के ऐसे वचन सुन भरत ने उत्तर दिया भो कृपानाथ ! यह कन्या राजा चेटक की है। राजा चेटक सिंधु देश में विशालापुरी का पालन करनेवाला है। यह कन्या आपको मिल तो सकती है किंतु राजा चेटक का यह प्रण है कि वह सिवाय जैनी के अपनी कन्या दूसरे राजा को नहीं देता। चेटक जैन धर्म का परम भक्त है। . इसलिए यदि आप इस कन्या को लेना चाहते हैं तो आप उसके अनुकूल ही उपाय करें॥५२-५४।। इत्याकर्ण्य सचितोऽभून्नृपः किं कार्यमत्र च । न प्रयच्छति चास्मभ्यं जैनाभावत्वतः पुनः ।। ५५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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