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________________ श्रेणिक पुराणम् १४ नाभिपद्माकरे यस्याः स्नाति मोहद्विपः सदा। अधः कचालिमधुपैः सेव्यमानेति निम्नके ॥४६ ।। भूषणाढ्यौ करौ रम्यौ कामपाशौ च कामिनां । लसत्कंचुकदीप्ताढ्यौ यस्या रेजतु रुन्नतौ ॥ ४७ ।। सूक्ष्म कटीतटं यस्याः पादौ पद्मावलंबितौ । पुनर्भूकांति संकीणौं भातो भूषणभूषितौ ।। ४८ ।। अनीदृशस्वरूपेयं किन्नरी यक्षयोषिता । खेचरी रोहिणी वाहो पद्मा पद्मावती पुनः ॥ ४६ ।। पुलोमजाऽथवा देवी रतिर्वा किं सरस्वती। नागकन्या पराकारा सूरकांताऽथवा किमु ॥ ५० ॥ इति चित्ते चिरं राजा संवितयं मुमोह च । प्रतिबिंबसमाकारो बभूव मगधाधिपः ।। ५१ ॥ इधर महाराज तो चित्रकार के विषय में यह विचार करने लगे। उधर चित्रकार को भी कहीं से यह पता लग गया कि महाराज चेटक मुझ पर कुपित हो गये हैं। मेरा पूरा-पूरा अपमान करना चाहते हैं । वह शीघ्र ही भय के कारण अपना झोली-डंडा ले वहाँ से उठ भागा। और कुछ दिन मंजिल-दर-मंजिल कर राजगृह नगर आ गया। राजगृह नगर में आकर उसने फिर चेलना का चित्रपट बनाया। और बड़े विनय से महाराज श्रेणिक की सभा में जाकर उसे भेंट कर दिया। महाराज उस समय अनेक मगध देश के बड़े-बड़े पुरुषों के साथ सिंहासन पर विराजमान थे। उनके चारों ओर कामिनी चमर डुला रही थीं। बंदीजन उनका यशोगान कर रहे थे। ज्योंही महाराज की दृष्टि चेलना के चित्र पर पड़ी। एकदम महाराज चकित रह गये। चेलना की सुव्यक्त तस्वीर देख उनके मन में अनेक प्रकार के संकल्प-विकल्प उठने लगे वे विचारने लगेइस चेलना का केश-वेश ऐसा जान पड़ता है मानो कामी पुरुषों के लिए यह अद्भुत जाल है। अथवा यों कहिए चूड़ामणियुक्त यह केश-वेश नहीं है। किंतु उत्तम रत्नयुक्त समस्त जीवों को भय का करनेवाला, यह काला नाग है। एवं जैसे चंद्रमायुक्त आकाश शोभित होता है उसी प्रकार गांगेय तिलकयुक्त चेलना का यह ललाट है। और यह जो भ्रूभंग से इसके ललाट पर ओंकार बन गया है वह ओंकार नहीं है जगद्विजयो कामदेव का बाण है। तथा गायन जिस प्रकार मग को परवश बना देता है। उसी प्रकार इसका कटाक्ष विक्षेप कामी जनों को परवश करनेवाला है। अहा! इस चेलना के कानों में जो ये दो मनोहर कुण्डल हैं सो कुण्डल नहीं। किंतु इसकी सेवार्थ दो सूर्य-चन्द्र हैं। मृगनयनी इस चेलना के ये कमल के समान फूले हुए नेत्र ऐसे जान पड़ते हैं मानो कामी जनों को वश में करनेवाले मंत्र हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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