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________________ श्रेणिक पुराणम् १४७ अचीकथत्तदा कर्णे जपः कश्चिच्च भूपतेः । तद्वत्तं स समाकर्ण्य चुकोप मनसा स्मरन् ॥ २७ ॥ कम्रलेखी तथाप्यत्रस्थमिदं तिलकं कथं ।। वेत्त्यहो कारणं किं वा न जानीमो वयं पराः ॥ २८ ॥ देवानामपि दुर्लक्ष्यं योगिनामप्यगोचरम् । स्त्रीचरित्रं कथं विद्मो मनुष्याः स्वल्पबुद्धयः ॥ २६ ॥ पिशुनोऽयं गतः संगो मुग्धया कन्यया समं । नि: काश्योऽतः स्वदेशाच्च विषमो गोत्रपापदः ॥ ३० ॥ कुमारी चेलना के चित्र को लेकर प्रथम तो ज्येष्ठा अति प्रसन्न हुई। किन्तु ज्योंही उसकी दृष्टि गुप्त स्थानों में रहे तिल आदि चिह्नों पर पड़ी, वह एकदम आश्चर्य-सागर में डूब गई। अब उसके मन में अनेकानेक संकल्प-विकल्प उठने लगे कि बाह्यांगों के चिह्नों की तो बात दूसरी है, इस चित्रकार को गुह्यांगों के चिह्नों का कैसे पता लग गया? न मालूम यह चित्रकार कैसा है ? इधर ज्येष्ठा तो ऐसा विचार कर रही थी, उधर किसी जासूस को भी इस बात का पता लग गया। और चित्रकार की सारी बातें महाराज चेटक से आकर कह दीं। जासूस के मुख से यह वृत्तांत सुन राजा चेटक अति कुपित हो गये। कुछ समय पहले जो राजा चेटक चित्रकार भरत को उत्तम समझते थे। वही बेचारा चित्रकार जासूस के वचनों से उन्हें काला भुजंग सरीखा जान पड़ने लगा। वे विचारने लगे-बड़े खेद की बात है कि इस नालायक चित्रकार ने कुमारी चेलना का गुप्त स्थान में स्थित चिह्न कैसे जान लिया? मैं नहीं जान सकता यह बात क्या हो गई ? अथवा ठीक ही है स्त्रियों का चरित्र सर्वथा विचित्र है। बड़ेबड़े देव भी इसका पता नहीं लगा सकते। अखंड ज्ञान के धारक योगी भी स्त्रियों के चरित्र का पता लगाने में हैरान हैं। तब न कुछ ज्ञान के धारक हम कैसे उनके चरित्र की सीमा पा सकते हैं? हाय मालूम होता है इस दुष्ट चित्रकार ने भोली-भाली कन्या चेलना के साथ कोई अनुचित काम कर डाला। कल को कलंकित करनेवाले इस दष्ट भरत को अब शीघ्र ही सिंध देश से निकाल देना चाहिए। अब क्षण-भर भी इसे विशालापुरी में रहने देना ठीक नहीं ॥२६-३०॥ कुतश्चिद्भरतो मत्वेति क्रु द्धं नरनायकम् । पलायनं व्यधादूरे भयकंपितविग्रहः ॥ ३१ ॥ ततः क्रमेण संप्राप्तः पुरं राजगृहं स्पृहम् । भरतो रूपमालिख्य चेलिन्याः पट्टके परे ।। ३२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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