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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
तिस्त्रोऽन्यदा महाकन्याश्चित्रकारं समाप्य च । बभाण तत्र ज्येष्ठा च प्रहस्य चित्रकृच्चेलनारूपं यथोक्तं पट्टके कुरु पश्यामि कलां आकर्ष्णेति ततस्तेन गृहीत्वा पट्टे पद्माप्रसादेनाऽलेखि गुह्यस्थानादिदेशेषु विलिख्य
कृतकौतुका ॥ २२ ॥ चेलवर्जितम् । विज्ञानपारगां ॥ २३ ॥ लेखिनीं वरां । रूपं यथाभवं ।। २४ ॥
तिलकादिकलक्षणं ।
दर्शयामास
तद्रूपं
संसार में जो लोग सात माता कहकर पुकारते हैं । और उनकी भक्ति भाव से पूजा करते हैं । सो अन्य कोई सात माता नहीं । इन्हीं कन्याओं को बिना समझे सात माता मान रखा है। यह सात माता का मिथ्यात्व उसी समय से जारी हुआ है । संसार में अब भी कई स्थानों पर यह मिथ्यात्व प्रचलित है ।
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मृत्युबर्द्धकं ।। २५ ।।
सातों कन्याओं में राजा चेटक की चार कन्या विवाहिता थीं। प्रथम कन्या का विवाह नाथवंशीय कुण्डपुर के स्वामी महाराज सिद्धार्थ के साथ हुआ था । द्वितीय कन्या मृगावती नाथवंशीय वत्स देश में कौशांबीपुरी के स्वामी महाराज नाथ के साथ विवाही गई थी । तथा तृतीय कन्या जो कि वसुप्रभा थी उसका विवाह राजा चेटक ने सूर्यवंशीय दशार्ण देश में हेरकच्छपुर के स्वामी राजा दशरथ को दी थी । एवं चतुर्थ कन्या प्रभावती का विवाह कच्छ देश में रोरूकपुर के स्वामी महाराज महातुर के साथ हो गया था। बाकी अभी तीन कन्या कुमारी ही थीं ।
कदाचित् ज्येष्ठा को आदि ले तीनों कन्या चित्रकार भरत के पास गईं। और उन सबमें बड़ी कुमारी ज्येष्ठा ने हँसी-हँसी में चित्रकार से कहा
भरत ! हम जब तुझे उत्तम चित्रकार समझें । कुमारी चेलना का जैसा रूप है, वैसा ही इसका वस्त्ररहित चित्र खींचकर तू हमें दिखावे ।
कुमारी चेलना का वस्त्र रहित चित्र खींचना भरत के लिए कौन बड़ी बात थी ? ज्योंही उसने ज्येष्ठा के वचन सुने, चट अपने सामने पट रखकर हाथ में लेखनी ले ली। और पद्मावती देवी के प्रसाद से जैसा कुमारी चेलना का रूप था । तथा जो-तो उसके गुप्तांगों में तिल आदि चिह्न थे, वे ज्यों-के-त्यों चित्र में आ गये । तथा चौखटा वगैरह से उस चित्र को अति मनोहर बना शीघ्र ही उसने ज्येष्ठा को दे दिया ।। १७-२५।।
कर,
अजीजनत्तदा कथं
पुत्री ज्येष्टा चिंतापरायणा । बुद्धमहोगुप्तं
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तिलकादिकलक्षणम् ॥ २६ ॥
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