________________
श्रेणिक पुराणम्
mr
गतेकाले कियन्मात्रे उत्सपिण्यामजायत । यः पंचातिशयः प्राप्तः शतेन्द्र सुरपूजितः ॥ १३ ॥ चिर प्ररूढतामस्य वृक्षे वज्रान्यते च यः । लुप्ताखिल जगद्धर्म मार्गे मार्ग मदोत्करे ।। १४ ।। उच्छेद्य तामसं लोके लोकान् धर्मेऽन्योजयेत् ।। यःप्रकाशस्य परं धाम ज्ञानानन्दितविग्रहः ॥ १५॥ यःश्रेणिक भवे पूर्व श्री वीर स्वामिः सन्निधौ। अच्छेद्यत्तरां दीर्घरूढ मिथ्यात्वमञ्जसा ।। १६ ॥ सम्प्राप्त क्षायिक रम्यं निर्मलं दोष निग्रहम् । करणानिच संकृत्त्ययः शुद्ध दृग्विमण्डितः ।। १७ ।। तीर्थनाथस्य सान्निध्ये तीर्थ कृत्वं ववन्धयः । अशेष पुण्य शास्तक्यं त्रैलोक्य क्षोभकारणम् ॥ १८ ॥ श्रेणिक प्रश्नमुद्दिश्य भगवान गदीद्वचः । हरिराम पुराणार्थ गर्भध्वान्त विनाशकम् ॥ १६ ॥ यस्य प्रश्न वशादद्य वर्तन्ते ग्रन्थ राशयः । पुराण व्रतसंख्यान सन्दर्भा दर्प हानयः ॥ २० ॥ महाश्रोता महाज्ञाता वक्ताधर्म परीक्षकः । बभूव श्रेणिको धीमान् भावी तीर्थंकरोऽग्रणीः ॥ २१ ॥ भविष्यत्तीर्थ नाथं तं नत्वा मूर्ध्वा निरन्तरम् ।
पद्मनाभं प्रवक्ष्येऽहं तत्चरित्रं भवान्वितम् ।। २२ ।। तथा इस भरत क्षेत्र में आगे होनेवाले, समस्त तीर्थंकरों में उत्तम, अत्यन्त तेजस्वी, श्री पद्मनाभ तीर्थंकर को भी मैं समस्त विघ्नों की शान्ति के लिए नमस्कार करता हूँ॥११-१२॥ जो पद्मनाभ भगवान, उत्सर्पिणी काल के कुछ समय के व्यतीत होने पर, इस भरत क्षेत्र में पाँच प्रकार के अतिशयोंकर सहित, सैकड़ों इन्द्र और देवों से पूजित, उत्पन्न होवेंगे, और चिरकाल से विद्यमान पापरूपी वक्ष के लिए वज्र के समान होंगे। तथा चतुर्थ काल की आदि में जब समस्त धर्म-मार्गों का नाश हो जायगा, अहंकार व्याप्त होगा, उस समय जो भगवान समस्त जीवों के अज्ञानांधकार को नाश कर, मोक्ष-मार्ग के प्रकाशनपूर्वक धर्म की ओर उन्मुख करेंगे। और जिस पद्मनाभ भगवान ने पहले अपने श्रेणिक भव में (श्रेणिक अवतार में) श्री महावीर स्वामी भगवान के समीप में, अनादि काल से विद्यमान मिथ्यात्व को शीघ्र ही दूर किया तथा अतिशय मनोहर निर्मल समस्त दोषों से रहित क्षायिक सम्यक्त्व को धारण किया और समस्त इन्द्रियों को संकोच
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org