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________________ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् ज्ञान भूषान् जिनान् धर्मतीर्थ नाथादिवान् परान् । शेषान् स्मरामि संसिद्धेये विशुद्ध ज्ञान सम्पदः ॥ ६ ॥ गणाधीशं पराधीशं वृषभादि सुशेनकम् । योगोद्दीपित देहाढ्यं तोष्टवीमीति हिताप्तये ॥ ७ ॥ तत्पश्चात् ज्ञानरूपी भूषण के धारक, धर्मरूपी तीर्थ के स्वामी श्री वृषभदेव भगवान से लेकर पार्श्वनाथ पर्यन्त तीर्थंकरों को भी मैं अपनी इष्ट सिद्धि के लिए इस ग्रन्थ की आदि में नमस्कार करता हूँ || ६ || इनसे भी भिन्न जो ज्ञान रूपी सम्पत्ति के धारी हैं उनको भी नमस्कार करता हूँ । तथा ध्यान से देदीप्यमान शरीर के धारी, गणों के स्वामी एवं उत्कृष्ट स्वामी (आदि गणधर ) श्री वृषभसेन गुरु को भी मैं अपने हित की प्राप्ति के लिए नमस्कार करता हूँ । तत्पश्चात् मुनि आर्यिका श्रावक और श्राविका इन चारों गणों से सेवित, धीर, समस्त पृथ्वी तल में श्रेष्ठ, जिनसे मिथ्यावादी लोग डरते हैं, और जो तीनों लोक के प्रकाश करनेवाले हैं, ऐसे ( अन्तिम गणधर) श्री गौतम स्वामी को भी मैं नमस्कार करता हूँ ॥७॥ २ ८ ॥ चतुर्गणाश्रितं धारं गौतमं गौतमं स्तुवे । मिथ्यावादीभ पंचास्यं विकाशित जगत्ययम् ॥ वो बुध्यन्ते जनाः सर्वं विष्टपे च हिताहितम् । यस्याः प्रसादतो वाणीं तां स्मरामि जिनोद्भवाम् ॥ ६ ॥ गुरुवो ये हितोद्युक्ताः सूक्ति सम्पद्विराजिताः । ज्ञानभूषाः प्रभा पुंजा: खंजीकृत मदद्विपाः ।। १० ।। इनके पश्चात् जिस भगवती वाणी के प्रसाद से संसार में जीव समस्त हिताहित को जानते हैं, और जो श्री केवली भगवान के मुख से प्रकट हुई है उस वाणी को भी मैं नमस्कार करता 11511 तत्पश्चात् जो गुरु हितकारी, श्रेष्ठ वचनरूपी सम्पत्ति से शोभित ज्ञानरूपी भूषण के धारक, अत्यन्त तेजस्वी अहंकाररूपी हस्ती के मर्दन करनेवाले हैं, ऐसे कामरूपी वैरियों के विजय कीर्ति को प्राप्त करनेवाले, हितैषी और पुण्यरूपी मेरु पर्वत के शिखर पर निवास करनेवाले अर्थात् अत्यन्त पुण्यात्मा गुरुओं को भी मैं नमस्कार करता हूँ ॥६- १० ॥ Jain Education International विजये कीर्ति सम्पन्नाः तांस्तां च हितकांक्षिणः । अनमं पुण्य हेमाद्रिमस्तके स्थिर वासिनः ।। ११ ।। अथात्र भारतेक्षेत्रे भविष्यं तं जिनोत्तमम् । विघ्नौघशान्तये ॥ १२ ॥ पदमनाभं प्रभापंजं वन्दे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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