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________________ ॥ ॐ नमः सिद्ध भ्यः ॥ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् श्रेणिक पुराणम् प्रथमः सर्गः श्रीवर्द्धमानमानन्दं नौमिनानागुणाकरम् । विशुद्धध्यान दीप्ताचिर्तुतकर्मसमुच्चयम् ।। १ ।। बाल्येऽपि मुनिसन्देह निर्माशाद्यो जिनेश्वरः। सन्मतित्वं समापन्नः सन्मत्याख्या समाश्रुतः ॥ २ ॥ अमराहि फणामर्द्धनाद्महावीर सुनामभाक् । बाल्ययोर्बालत्वः प्राप्तो वीराणां वीरतांगतः ॥ ३ ॥ जरतणमिवाख्यं तं प्राज्यं राज्यं नरेश्वरम् । मत्वा त्यक्त्वाम्भितो दीक्षां यो वीरो विश्ववन्दितः ।। ४ ॥ विकाश्य केवलं लोक्ये चकाशे धर्मसम्पदः ।। तंदधे हृदये देवं कृतलोकसुमंगलम् ॥ ५ ॥ शुक्लध्यान रूपी दैदीप्यमान अग्नि से समस्त कर्मों के समूह को जलाने वाले अनेक गुणों के आकर आनन्द के करनेवाले श्री वर्द्धमान तीर्थंकर को मैं नमस्कार करता हूँ॥१॥ जिस भगवान ने बाल्यावस्था में ही मुनियों का सन्देह दूर करने से श्रेष्ठ विद्वत्ता को पाकर सन्मति नाम को धारण किया ॥२॥ जिस भगवान ने कुमारावस्था में ही मायामयी सर्प के मर्दन करने से महावीर नाम को प्राप्त किया, और जो शिशु अवस्था में ही अत्यन्त बल को पाकर वीरों के वीर कहलाये ॥३॥ जिस भगवान ने मनुष्य लोक सम्बन्धी बड़े भारी राज्य को भी, जीर्ण तृण के समान समझ कर छोड़ दिया एवं जो दैगम्बरीय जिन दीक्षा धारण कर त्रैलोक्य के वन्दनीय हुए ॥४॥ तथा जो महावीर भगवान केवलज्ञान केवलदर्शन को प्रकाश कर धर्म रूपी सम्पत्ति से शोभित हुए। ऐसे समस्त लोक में आनन्द मंगल करनेवाले श्री महावीर भगवान को मैं (ग्रन्थकार) अपने हृदय कमल में धारण करता हूँ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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