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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
कर शुद्ध सम्यग्दर्शन से विभूषित हुए। जिस भगवान ने महावीर स्वामी के सामने तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया, और जिस पुण्यात्मा पद्मनाभ भगवान ने समस्त लोक में सर्वथा आश्चर्य करनेवाले आस्तिक्य गुण को प्राप्त किया॥१८॥ तथा जिस पद्मनाभ तीर्थंकर के श्रेणिक अवतार के समय, उनके किये हुए प्रश्न के उत्तर में श्री महावीर स्वामी ने समस्त पापों के नाश करनेवाले तथा इस श्रेणिक चरित्र के भी प्रकाश करनेवाले वचनों को प्रतिपादन किया, और जिस पदमनाभ भगवान के जीव, श्रेणिक महाराज के, प्रश्न के प्रसाद से. पराण व्रत संख्यान आदिके वर्णन करने वाले, समस्त विवादियों के अभिमान को नाश करनेवाले इस समय भी अनेक ग्रन्थ विद्यमान हैं, जो श्रेणिक महाराज महाश्रोता, महाज्ञाता, महावक्ता, धर्म की वास्तविक परीक्षा करनेवाले, भविष्यत्काल में होनेवाले समस्त तीर्थंकरों में प्रथम व मुख्य तीर्थंकर भगवान होंगे (श्रेणिक महाराज के जीव) श्री पद्मनाभ तीर्थंकर को भी मैं मस्तक झुकाकर नमस्कारपूर्वक उनके संसार सम्बन्धी समस्त चरित्र का वर्णन करता हूँ॥१६-२२॥
क्वचरित्रं क्वमे बुद्धिरनन्त जिनविस्तरम् । असंख्येय भेद सम्भिन्न ज्ञानाच्छादन संग्रहः ।। २३ ॥ सप्तभुमं महोत्तुंग मारु रुक्षोर्ग होत्तमम् । खंजस्येव प्रशंसास्यान्मामकीनां न संशयः ।। २४ ।। वसन्ते कोकिले व्रते काकाश्चापि निरन्तरम् । समयेर्य सूरिश्च सदाहं तत्र कोविस्मयः ॥ २५॥ पुष्पदन्तगते लोके न चकासतित्तारकाः । अल्पे प्रभावयं किं च चकास्मतददुद्धताः ।। २६ ॥
ग्रन्थकार शुभचन्द्राचार्य अपनी लघुता प्रकाश करते हुए कहते हैं कि कहाँ तीर्थंकर का यह चरित्र जिसके विस्तार का अन्त नहीं, और कहाँ अनेक प्रकार के आवरणों से ढकी हुई मेरी बुद्धि तथापि जिस प्रकार सप्त महले उत्तम मकान के ऊपर चढ़ने की इच्छा करनेवाला पंगु पुरुष, प्रशंसा का पात्र होता है, उसी प्रकार इस गम्भीर विस्तृत चरित्र के वर्णन करने से मैं भी प्रशंसा का भाजन होऊँगा इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं। यदि कोई विद्वान मझे वावदूक अर्थात् अधिक बोलनेवाला वाचाल कहे तो भी मुझे किसी प्रकार का भय नहीं क्योंकि जिस प्रकार कोयल वसन्त ऋतु में ही बोलती है और शुक सदा ही बोलता रहता है फिर भी शक का बोलना किसी को आश्चर्य का करनेवाला नहीं होता, उसी प्रकार यद्यपि पूर्वाचार्य परिमित तथा समय पर ही बोलनेवाले थे और मैं सदा बोलनेवाला हूँ तो भी मेरा बोलना आश्चर्यजनक नहीं। जिस प्रकार पूष्पदन्त नक्षत्र के अस्त हो जाने पर अल्प प्रभाववाले तारागण भी चमकने लगते हैं उसी प्रकार यद्यपि पूर्वाचार्यों के सामने मैं कुछ भी जाननेवाला नहीं हूँ तो भी इस चरित्र के कहने के लिए मैं उद्धत होकर उद्योग करता हूँ॥२६॥
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