________________
श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
अशक्तौ भेत्तुमाज्ञाय तौ जनाराजमंदिरे । अभयां तं समापन्नास्ताभ्यां तन्न्यायसिद्धये ।। ७२ ।।
भद्रा को इस प्रकार अपने व्रत में दृढ़ देख वसंत की कुछ भी पेश न चली। वह पागल सरीखा हो गया। वह मूर्ख विचारने लगा कि भद्रा को यह व्रत किसने दे दिया? अब मैं भद्रा को अपनी आज्ञाकारिणी कैसे बनाऊँ ? क्या इसे हठ से दासी बनाऊँ या किसी मंत्र से बनाऊँ ? क्या करूँ?
पापी वसंत ऐसा अधम विचार कर ही रहा था कि अचानक ही एक महाभीम नाम का मंत्रवादी अयोध्या में आ पहुँचा। सारे नगर में मंत्रवादी का हल्ला हो गया। वसंत के कान तक भी यह बात पहुँची। मंत्रवादी का आगमन सुन वसंत शीघ्र ही उसके पास गया और स्नान, भोजन आदि से वसंत ने यथेष्ट उसकी सेवा की। जब कई दिन इसी प्रकार सेवा करते बीत गये। और मंत्रवादी को जब अपने ऊपर वसंत ने प्रसन्न देखा तो उसने अपना सारा हाल मंत्रवादी को कह सुनाया। और विनय से बहुरूपिणी विद्या के लिए याचना भी की।
वसंत की मंत्र के लिए प्रार्थना सुन एवं उसकी सेवा से संतुष्ट होकर मंत्रवादी महाभीम ने उसे विधिपूर्वक मंत्र दे दिये तथा मंत्र लेकर वसंत किसी वन में चला गया। और उसे सिद्ध करने लगा। दैवयोग से अनेक दिन बाद वसंत को मंत्र सिद्ध हो गया। अब मंत्रबल से वह छोटे-बड़े शरीर धारण करने लगा एवं अनेक प्रकार की चेष्टा करनी भी उसने प्रारंभ कर दी।
कदाचित् उसके सिर पर फिर भद्रा का भूत सवार हो गया। किसी दिन वह अचानक ही मुर्गे का रूप धारण कर बलभद्र के घर के पास चिल्लाने लगा। मुर्गे की आवाज से यह समझ कि सबेरा हो गया, अपने पशुओं को लेकर बलभद्र तो अपने खेत की ओर रवाना हो गया। और उस पापी वसंत ने मुर्गे का रूप बदल शीघ्र ही बलभद्र का रूप धारण किया। और धृष्टतापूर्वक बलभद्र के घर में घुस गया।
सुशीला भद्रा की दृष्टि नकली बलभद्र पर पड़ी। चाल-ढाल से उसे चट मालूम हो गया कि यह मेरा पति बलभद्र नहीं। तथा उसने गाली देनी भी शुरू कर दी। किन्तु उस नकली बलभद्र ने कुछ भी परवा न की। वह निर्लज्ज किवाड़ बंद कर जबरन उसके घर में घुस पड़ा। नकली बलभद्रका इस प्रकार धृष्टतापूर्वक बर्ताव देख भद्रा चिल्लाने लगी। नकली बलभद्र एवं भद्रा का झगड़ा भी बड़े जोर-शोर से होने लगा। झगड़े की आवाज सुन आसपास के सब भद्रा के घर आ कर इकट्ठे हो गये। असली बलभद्र के कान तक भी यह बात पहुँची। वह भी दौड़ता-दौड़ता शीघ्र अपने घर आया। और अपने समान दूसरा बलभद्र देख आपस में झगड़ा करने लगा। दोनों बलभद्रों की चाल-ढाल, रूप-रंग देख पास-पडोसी मनष्यों के होश उड गये। सब-के-सब दाँ उँगली दबाने लगे। तथा अनेक उपाय करने पर भी उनको ज़रा भी इस बात का पता न लगा कि इन दोनों में असली बलभद्र कौन है ? ॥६०-७२।।
अभयेन सभामध्ये दृष्टौ स श्रेणिकेन च । दृष्टिस्वर विवादैश्चालक्ष्यौ संकेतदर्शनैः ।। ७३ ॥
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org