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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
मुनिराज के ज्ञान की अपूर्व महिमा सुन भद्रा को अति आनंद हुआ। मुनिराज की आज्ञा अनुसार जिस शील से देवेन्द्र नरेन्द्र आदि उत्तमोत्तम पद प्राप्त होते हैं वह शीलवत शीघ्र ही उसने धारण कर लिया एवं समस्त मुनियों में उत्तम, जीवों को कल्याण-मार्ग का उपदेश देनेवाले, मुनिराज गुणसागर को नमस्कार कर वह शीघ्र ही अपने घर आ गई ॥५१-५४।।
ततस्तौ समसच्चितौ कुर्वतौ जिनसद्व षम् । गमयंतौ निजं कालं शर्मणावतभूषितौ ॥ ५५॥ प्रार्थयंस्तां वसंतश्च प्रेषयन् दूतिकां निजाम् । दर्शयंल्लोभ संतानं कुर्वन्विविधविक्रियां ॥ ५६ ॥ सा धिक्कारादिकं कृत्वा नावलोकयति स्वयं । सन्मुखं कथयंतीति गृहीतंच मया व्रतम् ॥ ५७ ॥ रे पापिन् व्रतहीनस्त्वं न करोमि त्वया समम् । संगमं प्राणनाशेप्यभिलाषं मा कृथा वृथा ।। ५८ ।। ततोऽभेद्यां परिज्ञाय वसंतो विधिवंचितः । उपायं चितयंश्चित्ते शीलखंडनहेतवे ।। ५६ ।।
उत्तम उपदेश का फल भी उत्तम ही होता है। वसंत की बातों में फंसकर जो भद्रा ने वसंत को अपना लिया था। और अपने पति का अनादर करना प्रारंभ कर दिया था। भद्रा की वह प्रकृति अब न रही। पाप से भयभीत हो भद्रा ने वसंत से अब सर्वथा सम्बन्ध तोड़ दिया। उस दिन से वसंत उसकी दृष्टि में कालाभुजंग सरीखा झलकृने लगा। अब वह अपने पति की तन-मन से सेवा करने लगी। अपने स्वामी के साथ स्नेह का व्यवहार करने लगी। भद्रा का जैन धर्म पर अगाध प्रेम हो गया। अपने सुख का महान कारण जैन धर्म ही उसे जान पड़ने लगा। तथा जैन धर्म पर उसकी यहाँ तक गाढ़ भक्ति हो गई कि उसने अपने पति को भी जैनी बना लिया। एवं वे दोनों दंपती आनंदपूर्वक अयोध्या नगरी में रहने लगे।
भद्रा ने जिस दिन से शीलवत को धारण किया उसी दिन से वह वसंत के घर झाँकी तक नहीं। इस रीति से जब कई दिन बीत गये वसंत को बिना भद्रा के बड़ा दुःख हुआ। वह विचार करने लगा-भद्रा अब मेरे घर क्यों नहीं आती? जो वह कहती थी सो ही मैं करता था। मैंने कोई उसका अपराध भी तो नहीं किया? तथा क्षणेक ऐसा विचार कर उसने भद्रा के समीप एक दूती भेजी। दूती के द्वारा वसंत ने बहुत-कुछ भद्रा को लोभ दिखाये । अनेक प्रकार के अनुनय भी किये। किन्तु भद्रा ने दूती की बात तक भी न सुनी। मौका पाकर वसंत भी भद्रा के पास गया। किन्तु भद्रा ने वसंत को भी यह जवाब दे दिया कि मैं अब शीलवत धारण कर चुकी। अपने स्वामी को छोड़कर मैं पर-पुरुष की प्रतिज्ञा ले चुकी। अब मैं कदापि तेरे साथ विषय-भोग नहीं कर सकती। भद्रा की यह बात सुन जब वसंत उसे धमकी देने लगा और उसके साथ व्यभिचारार्थ
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