________________
१३५
श्रेणिक पुराणम्
किन-किन घोर दुःखों का सामना करना पड़ता है ? भद्रे ! जो जीव अपने शीलरूपी भूषण की रक्षा नहीं करते वे अनेक पापों का उपार्जन करते हैं । उन्हें नरकादि दुर्गतियों में जाना पड़ता है । एवं वहाँ पर कठिन से कठिन दुःख भोगने पड़ते हैं । तथा भद्रे ! शील के न धारण करने से संसार में भयंकर वेदनाओं का सामना करना पड़ता है। कुशीली जीव अज्ञानी जीव कहे जाते हैं । उनके कुल नष्ट हो जाते हैं । चारों ओर उनकी अपकीर्ति फैल जाती है । और अपकीत्ति फैलने पर शोक संताप आदि व्यथा भी उन्हें सहनी पड़ती हैं । इसलिए यदि तू संसार में सुख चाहती है । और तुझे रमणी - रत्न बनने की अभिलाषा है तो तू शीघ्र ही इस खोटे शील का परित्याग कर दे । उत्तम शील- व्रत में ही अपनी बुद्धि स्थिर कर । अपने चंचल चित्त को कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग ला । एवं अपने पवित्र पतिव्रत धर्म का पालन कर । हे बाले ! जो स्त्रियाँ संसार में भली प्रकार अपने पतिव्रत धर्म की रक्षा करती हैं, उनके लिए अति कठिन बात भी सर्वथा सरल हो जाती है । अधिक क्या कहा जाय पतिव्रत धर्म-पालन करनेवाली स्त्रियों का संसार भी सर्वथा छूट जाता है। उन्हें किसी प्रकार को सुसंगति का सामना नहीं करना पड़ता ।।४४-५० ।।
ततो बभाण योगींद्रः शृणु बाले वेद्म्यहं ज्ञानयोगेन कोऽत्रास्ति तव
ततस्तद्वचसा बाला शीलं इंद्रचंद्रनरेंद्राद्यैः
प्रणम्य
Jain Education International
मनोगतं । विस्मयः ।। ५१ ।।
जग्राह् वंदितं ।
मुनिसत्तमं ।। ५२ ।।
जगाम मंदिरं हृष्टा कृतशील परिग्रहा ।
दधती मोहमानंदं
बलिभद्रे निजे धवे ॥ ५३ ॥
कुर्वती जिनधर्मंच
पालयंती शुभं व्रतं ।
सा संबोध्य धवं दक्षा ग्राहयामास सद्व्रतं ।। ५४ ।।
महामुनि गुणसागर के उपदेश का भद्रा के चित्त पर पूरा प्रभाव पड़ गया। कुछ समय पहले जो भद्रा का चित्त कुशील में फँसा हुआ था, वह शीलव्रत की ओर लहराने लगा । मुनिराज के वचन सुनने से भद्रा का चित्त मारे आनंद के व्याप्त हो गया। शरीर में रोमांच खड़े हो गये । एवं गद्गद कंठ से उसने मुनिराज से निवेदन किया
-
प्रभो ! मेरे चित्त की वृत्ति कुशील की ओर झुकी हुई है यह बात आपको कैसे मालूम हो गई ? किसी ने आपसे कहा भी नहीं ? कृपाकर इस दासी पर अनुग्रह कर शीघ्र बताइए ।
भद्रा के ऐसे वचन सुन मुनिराज ने उत्तर दिया- भद्रे ! तेरे चरित्र के विषय में मुझसे किसी ने भी कुछ नहीं कहा किन्तु मेरी आत्मा के अन्दर ऐसा उत्तम ज्ञान विराजमान है। जिस ज्ञान के बल से मैंने तेरे मन का अभिप्राय समझ लिया है। ज्ञान की शक्ति अपूर्व है इस बात में तुझे जरा भी संदेह नहीं करना चाहिए ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org