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________________ श्रेणिक पुराणम् तेऽर्थं पूर्वं न जानंति पश्चात्सर्गत्वकिंचन । पाठकानार्थवेत्तारो विप्राः पश्चिमबुद्धयः ।। १४१॥ Jain Education International विज्ञानं शक्रराजस्य किं वा यक्षराजस्य किं दाहो स्तर्यस्य न विप्राणामियं बुद्धि निश्चयेन च किं चितया ? परीक्षामि बुद्धिहेतुं बुद्धिदायक सन्मवीक्षणाय संप्रेषिता नरास्तेऽपि चेलुस्तन्नगरं चंद्रमसः पुनः । धरणस्यवा ।। १४२॥ निधियाम् । सुयत्नतः ॥ १४३॥ नराधिपः । वरं ॥१४४॥ विप्रों को इस प्रकार करुणापूर्वक रुदन करते हुए देख अभयकुमार का चित्त करुणा से गद्गद हो गया । उन्होंने गम्भीरतापूर्वक विप्रों से कहा- विप्रो ! आप क्यों मामूली-सी बात के लिए इतना घबराते हैं। मैं अभी इसका उपाय करता हूँ । जब तक मैं यहाँ पर हूँ तब तक आप किसी प्रकार से राजा की आज्ञा का भय न करें। तथा विप्रों को इस प्रकार समझाकर अभय कुमार ने एक घड़ा मँगाया। और उसमें बेल सहित कूष्मांड़ फल को रख दिया। अनेक प्रयत्न करने पर कई दिन बाद कूष्मांड़ घड़े के बराबर बढ़ गया। और कुमार ने घड़े सहित ज्यों-का-त्यों उसे महाराज की सेवा में भिजवा दिया। एवं वे आनंद से रहने लगे । For Private & Personal Use Only ११९ महाराज ने जैसा कूष्मांड़ माँगा था वैसा ही उनके पास पहुँच गया। अबकी कूष्मांड़ देख कर तो महाराज के सोच का पारावार न रहा । वे बारम्बार सोचने लगे हैं ! यह बात क्या है ? क्या नन्दिग्राम के ब्राह्मण ही इतने बुद्धिमान हैं ? या इनके पास कोई और ही मनुष्य बुद्धिमान रहता है ? नन्दिग्राम के ब्राह्मणों का तो इतना पांडित्य नहीं हो सकता। क्योंकि जब से इनको राज्य की ओर से स्थिर आजीविका मिली है तब से ये लोग निपट अज्ञानी हो गये हैं । इनकी समझ में साधारण से साधारण बात तो आती ही नहीं फिर इनके द्वारा मेरी बातों का जवाब देना तो बहुत ही कठिन बात है । जो-जो काम मैंने नन्दिग्राम के ब्राह्मणों के पास भेजे हैं। सबका tara मुझे बुद्धिपूर्वक ही मिला है। इसलिए यही निश्चय होता है । नन्दिग्राम में अवश्य कोई असाधारण बुद्धिधारक ब्राह्मणों से अन्य ही मनुष्य है । जिस पांडित्य से मेरी बातों का जवाब दिया गया है। न मालूम वह पांडित्य इन्द्रदेव का है ? या चन्द्रदेव का है ? अथवा सूर्यदेव या यक्षराज का है ? नन्दिग्राम के ब्राह्मणों का तो किसी प्रकार वैसा पांडित्य नहीं हो सकता । अस्तु, यदि नन्दिग्राम के ब्राह्मण ही इतने बुद्धिमान हैं तो अभी मैं उनकी बुद्धि की फिर परीक्षा किये लेता हूँ। तथा इस प्रकार क्षणेक अपने मन में पक्का निश्चय कर महाराज ने शीघ्र ही कुछ शूरवीर योद्धाओं को बुलाया । और उन्हें यह आज्ञा दी कि तुम लोग अभी नन्दिग्राम जाओ। और नन्दिग्राम में जो अधिक बुद्धिमान हो शीघ्र ही उसे तलाश कर आकर कहो । महाराज की आज्ञा पाते ही योद्धाओं ने शीघ्र ही नन्दिग्रान की ओर गमन कर दिया । तथा नन्दिग्राम के किसी मनोहर वन में वे अपनी भूख की शांति के लिए ठहर गये ।। १३७ - १४४॥ www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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