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________________ श्रेणिक पुराणम् हैं। तथा इस प्रकार विनयपूर्वक निवेदन कर विप्र राजमंदिर से चले गये। किंतु विप्रों के विनय करने पर भी महाराज के कोप की शांति न हुई । विप्रों के चले जाने पर उन्हें फिर नन्दिग्राम के अपमान का स्मरण आया । उनके शरीर में फिर क्रोध की ज्वाला छटकने लगी ।। १२२-१२६ ।। अन्यदा क्षितिपालश्च चुकोप पूर्वजं स्मरन् । ददामि तादृशादेशं कर्त्तुं कैश्चिन्न शक्यते ॥१२७॥ Jain Education International घटे घटप्रमाणं च कूष्मांडफलमुत्तमं । आनेतव्यं द्विजाधीशा नो चेद्ग्रामाद्बहिर्गतिः ॥ १२८ ॥ नराधिपः । वाड़वा जग्मुरभयस्य समक्षतां ॥ १२ ॥ ददाविति तदादेशं वाडवानां आकर्ण्य त्राहि त्राहि कृपाधीश ! लाहि लाह्यभयं द्विजान् । पाहि पाहि नृप क्रोधात्ख्याहि ख्याहि शुभं शुभम् ॥१३०॥ प्रमीमांस्य चिरं चित्ते प्रदीदांस्य ममव्ययाम् । प्रशीशांस्य धिया चित्तं प्रवीभत्स्य नृपोद्भवम् ॥ १३१ ॥ कुरु प्रतिक्रियां राजन् जीवने वाडवस्य च । गंभीरत्वं समुद्रस्याचलत्वं मंदरस्य च ।। १३२ ।। विद्वत्त्वं देवजीवस्य भानोस्त्वयि प्रतापता । आधिपत्यं सदा जिष्णो हिमांशोः सौम्यता पुनः ।। १३३ ।। न्यायत्वं रामदेवस्य पुष्पबाणस्य रूपिता । बुद्धित्वं ज्ञानिनः स्वामिन् समस्ति शुभशासन ।। १३४ ।। अतः प्रसीद धीरत्वं कुरु चिंतां मम प्रभो । अतः प्रभृति बुद्धीश त्वत्तो जीवितमुल्वणं ॥ १३५ ॥ घटे कूष्मांडपं कुरु त्वत्समो नास्ति सबंधुर्भुवने जीवनहेतवे । रक्षणोद्यतः ।। १३६ ।। ११७ वे विचारने लगे कि विप्र किसी प्रकार दोषी नहीं बन पाये हैं । नन्दिग्राम के विप्र बड़े चालाक मालूम पड़ते हैं । अस्तु, मैं अब उनके पास ऐसी आज्ञा भेजता हूँ जिसका वे पालन ही न For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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