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श्रेणिक पुराणम्
लगातार लगा दो। जिस समय महाराज अपने राजमंदिर में गाढ़ी निद्रा में सोते हों। बेधड़क हल्ला करते हुए राजमंदिर में घुस जाओ। और खूब जोर से पुकारकर कहो। नन्दिग्राम के ब्राह्मण बावड़ी लाये हैं। जो उन्हें आज्ञा होय सो किया जाय। बस महाराज के उत्तर से ही आपका यह विघ्न टल जायगा ॥७३-७८।।
निद्रालुना तदा राज्ञा बभाषे वचनं शनैः । तत्रैव स्थापनीया सा गम्यतां सत्वरं गृहात् ।। ७६ ।। ततः पशून् समादाय विप्रा जग्मुनिजं पुरम् ।। तदाद्यभयतस्तुष्टा मन्यमाना स्वजीवितं ।। ८० ॥ अहोबद्धि रहोबुद्धिरभयस्य जगत्त्रये। अतिलोके गुणोपेतो शंसामिति व्यद्धिजाः ॥ ८१॥
कुमार की यह युक्ति सुन ब्राह्मणों ने गाँव के समस्त बैल एवं भैंसा एकत्रित किये। उनके कंधों पर जूआ रख दिया। और उन्हें नन्दिग्राम से राजमंदिर तक जोत दिया। जिस समय महाराज गाढ़ी निद्रा में बेसुध सो रहे थे। राजमंदिर में बड़े जोर का हल्ला करना प्रारंभ कर दिया। और महाराज के पास जाकर यह कहा-महाराजाधिराज ! नन्दिग्राम के ब्राह्मण बावड़ी लाये हैं । अब उन्हें जो आज्ञा हो, सो करें।
उस समय महाराज के ऊपर निद्रा देवी का पूरा-पूरा प्रभाव पड़ा हुआ था। निद्रा के नशे में उन्हें अपने तन-बदन का भी होशोहवास नहीं था। इसलिए जिस समय उन्होंने ब्राह्मणों के वचन सुने, तो बेसुध में उनके मुख से धीरे से ये ही शब्द निकल गये कि जहाँ से बावड़ी लाये हो, वहीं पर बावड़ी ले जाकर रख दो। और राजमंदिर से शीघ्र ही चले जाओ। बस फिर क्या था ? ब्राह्मण तो यह चाहते ही थे कि किसी रीति से महाराज के मुख से हमारे अनुकूल वचन निकलें। जिस समय महाराज से उन्हें अनुकूल जवाब मिला तो अपार हर्ष से उनका शरीर रोमांचित हो गया। वे उछलते-कूदते तत्काल ही नन्दिग्राम को लौट गये । और वहाँ पहुँचकर, विघ्न की शांति से अपना पुनर्जीवन समझ, वे सुखसागर में गोता मारने लगे। तथा अभयकुमार के चातुर्य पर मुग्ध होकर उनके मुख से खुले मैदान ये ही शब्द निकलने लगे कि अभयकुमार की बुद्धि अत्युत्तम और आश्चर्य करनेवाली है। इनका हरेक विषय में पांडित्य सबसे चढ़ा-बढ़ा है। सौजन्य आदि गुण भी इनके लोकोत्तर हैं इत्यादि ॥७९-८१॥
जजागार क्षणाद्भ पो वदन्निति क्व वापिका । आनीयतां तदा प्राह कश्चिद्भो मगधाधिप ।। ८२ ।। आनीता वापिका विप्रै निशायां भवता पुनः । उक्तं स्थाप्या च तत्रैव तैस्तथाकारि भूपते ॥ ८३ ॥
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