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श्रेणिक पुराणम्
अब्धिवन्नवसंतोषो विप्राणां दुष्टचेतसाम् । गृह्णतां गृह्णतां वित्तं परकीयं सुवर्तते ॥ २८ ॥ आदत्ते ताम्रपत्रेण परोत्थं पापमुन्नतम् । हिंसापरांगनाजातं दुष्टं वा विप्रचेष्टितम् ॥ २६ ॥ विप्रतारण वाक्येन वेदेन नंति वाड़वाः । जंतूनिति पठंतश्च विचारा तत्पराः खलाः ।। ३० ।। ब्रह्मणे ब्राह्मणं हन्यादिंद्राय क्षत्रियं तथा । मरुद्भयो वणिज हन्यात्तमसं शूद्रमालभेत् ॥ ३१ ॥ चौरमुत्तमसं दद्यात्सूर्याय भ्र णसंयुता। अलभेत स्त्रियं रम्यामिति वाक्यानि कः पठेत् ॥ ३२॥ मद्यमांसाशनं वेदवाक्यात्कुर्वति वाडवाः । तैलाभ्यंगित गात्रं च भुंजते परयोषितं ।। ३३ ।। इति युक्त्यक्षमं येषां ' शासनं वर्त्तते भुवि । कथं भुंजंति मे ग्राम खलास्ते पापपंडिताः ।। ३४ ॥
सामवेद, यजुर्वेद, ऋग्वेद और अथर्ववेद ऐसे चार प्रकार के वेद हैं उनसे ऐसा कहा गया है कि लोभ के वजह से ब्राह्मणो! दूसरों के ऐश्वर्य तुम ग्रहण करो क्योंकि दुष्ट अभिप्रायवाले ब्राह्मणों को कदापि परसम्पत्ति ग्रहण किये बिना उनको संतोष नहीं होता जैसे अनेक तरंगों से क्षोभित समुद्र को कभी भी शांति नहीं मिलती तद्वत् परस्त्री संयोग से उत्पन्न होनेवाला जो पाप साक्षात् हिंसाजनक होने से वह पाप जीव को नरक में पटक देता है ऐसा जैनागम कहता है। ऐसा मिथ्या दुष्ट ब्राह्मणों का कथन सुना जाता है। और उन दुर्जनों के वेद-वाक्य से ही सिद्ध होता है कि होमादिक में पशुओं को बलि देना चाहिए इससे बलि देनेवालों को स्वर्ग मिलेगा इत्यादि और ब्राह्मणों से ब्राह्मण को मारा जाता है तथा इन्द्र से क्षत्रिय को मारा जाता है। ऐसा वेदवाक्य दुष्ट ब्राह्मणों से पठन-पाठन किया जाता है। तथा पवन कुमार से वैश्य को मारना चाहिए और सूर्य को अर्घ्य चढ़ाना नमस्कार करना इत्यादि ऐशा अश्लील वाक्यों का प्रयोग वेद में देखा जाता है। और वेद-वाक्य से शराब-पान तथा मांस-सेवन, परस्त्री का संग तथा तैल मर्दनादि प्रयोग किये जाते हैं इस प्रकार ब्राह्मणों का शासन युक्तियों से रहित होने से नहीं माना जाता है। इस दुनिया में बरतनेवाले ऐसे पापाचारी नन्दिग्राम के ब्राह्मण मेरे नन्दिग्राम को कैसे सेवन कर सकते हैं ? इस प्रकार महाराज श्रेणिक मन्त्रियों को कह रहे हैं।२८-३४।।
निष्काशयामि तान् विप्रानिदानी पापकोविदान् । इत्यातयं चिरं चित्ते आदिदेश नृपो भटान् ॥ ३५ ॥
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