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श्रेणिक पुराणम्
तदा तस्याभवद्रोषो युद्धं जातं तयोः पुनः । सहस्राष्टकमाहत्य रत्नचूलं बबंध सः ।। १८ ।। मृगांक कथयामास श्रेणिकागमनादिजाम् । वार्त्ता पुनर्विमुच्याशु बद्धं रत्नशिखं मुदा ।। १६ ।।
हे राजन् रत्नचूल ! यह विलासवती तो मगधेश्वर महाराज श्रेणिक को दी जा चुकी है। आप न्यायवान् होकर क्यों राजा मृगांक से विलासवती के लिए जोरावरी कर रहे हैं। आप सरीखे नरेशों का ऐसा बर्ताव शोभाजनक नहीं ।
रत्नचूल का काल तो सिर पर मँडरा रहा था । भला वह नीति एवं अनीति पर विचार करने कब चला। उसने जम्बू कुमार के वचनों पर रत्ती भर भी ध्यान नहीं दिया । और उल्टा नाराज होकर जम्बू कुमार से लड़ने के लिए तैयार हो गया। जम्बू कुमार भी किसी कदर कम न था वह भी शीघ्र युद्धार्थ तैयार हो गया । और कुछ समय पर्यंत युद्ध कर जम्बू कुमार ने रत्नचल को बाँध लिया । उसकी आठ हजार सेना को काट-पीटकर नष्ट कर दिया एवं उसे राजा मृगांक के चरणों में डालकर जो कुछ वृत्तांत हुआ था सारा कह सुनाया । तथा यह भी कहा कि महाराज श्रेणिक भी केरला नगरी की ओर आ रहे हैं ।। १७-१६ ।।
विमान:
शतपंचभिः । समादायागमद्गगन मार्गतः ॥ २० ॥
कुरलाचलसंरूढं नृपं ते वीक्ष्य सस्मिताः । समुत्तीर्य प्रणेमुस्ते वाचालाः कुशलादिभिः ॥ २१ ॥ महोत्सवैः समं कन्या मुपयेमे अन्यां नृपकुलोद्भ ूतां वधूंच
नृपाधिपः ।
वरपुण्यतः ॥ २२ ॥
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मृगांकरत्न चूलाभ्यां कन्यां तां स
जम्बू कुमार का यह असाधारण कृत्य देख राजा मृगांक अति प्रसन्न हुए । उन्होंने जम्ब कुमार की बारम्बार प्रशंसा की एवं जम्बू कुमार की अनुमतिपूर्वक राजा मृगांक ने राजा रत्नचूल एवं पाँच सौ विमानों के साथ कन्या विलासवती को लेकर राजगृह की ओर प्रस्थान कर दिया ।
महाराज श्रेणिक तो कुरलाचल की तलहटी में ठहरे ही थे। जिस समय राजा मृगांक के विमान कुरलाचल की तलहटी में पहुँचे जम्बू कुमार की दृष्टि राजा श्रेणिक पर पड़ गई । महाराज को देख राजा मृगांक सबके साथ शीघ्र ही वहाँ उतर पड़े । उन सबने भक्तिभाव से महाराज श्रेणिक को नमस्कार किया। और परस्पर कुशल पूछने लगे । तथा कुशल पूछने के बाद शुभ मुहूर्त में कन्या विलासवती का महाराज श्रेणिक के साथ विवाह भी हो गया ॥ २०-२२॥
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