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________________ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् उस पुत्री का दृढ़ संकल्प कर लिया। अनेक बार मनाही करने पर भी हंसद्वीप का स्वामी राजा रत्नचूल यद्यपि उस पुत्री के साथ जबरन विवाह करना चाहता है। राजा मृगांक से जबरन विलासवती को छीन लेने के लिए रत्नचूल ने अपनी सेना के द्वारा चारों ओर से नगरी को भी घेर लिया है । तथापि राजा मृगांक उसे पुत्री देना नहीं चाहता। मैंने ये बातें प्रत्यक्ष देखी हैं ! मैं यह समाचार आपको सुनने आया हूँ, अधिक समय तक मैं यहाँ ठहर भी नहीं सकता। अब आप जो उचित समझें, सो करें॥१०-१२।। श्रुत्वेति गंतुमुधुक्तं भूपं वीक्ष्य खगो जगौ । क्व भवान् पूः क्व मार्गः क्वागम्यो भूचारिणां सदा ॥ १३ ॥ तदा जंबूकुमाराख्यो जिनमत्याः सुतो नृपात् । गृहीत्वा देशममुना गतस्तत्र नभोद्धतः ॥ १४ ॥ विद्याधर जम्बूकुमार के वचन सुनते ही महाराज चुपचाप न बैठ सके। उन्होंने केरला नगरी को जाने के लिए शीघ्र ही तैयारी कर दी। एवं सेनापति को बुला उसे सेना तैयार करने के लिए आज्ञा भी दे दी। जम्बू कुमार का उद्देश्य यह न था कि महाराज श्रेणिक केरला नगरी चलें। और न वह महाराज को लेने के लिए राजगृह ही आया था। किन्तु उसका उद्देश्य केवल महाराज की विवाह-स्वीकारता का था। जिस समय उसने महाराज को सर्वथा चलने के लिए तैयार देखा तो वह इस रीति से विनय से कहने लगा। हे महाराज! कहाँ तो आप? और कहाँ केरला नगरी? आप भूमिगोचरी हैं। वहाँ आपका जाना कठिन है। आप यहीं रहें। मुझे जल्दी जाने की आज्ञा दें। तथा ऐसा कहकर वह शीघ्र ही आकाश-मार्ग से चल दिया । और शीघ्र केरला नगरी में पहुँच गया॥१३-१४॥ श्रेणिकोऽपि बलेनामागतो विध्याटवीं यदा। कुरलाचलमासाद्य स्थितो विश्राममाश्रितः ।। १५ ॥ रत्नचूलं बलं वीक्ष्य जंबूस्तदा भुवं श्रितः ।। द्वाः स्थं निवेद्य संप्रापत् किंचित्कार्यकृतेखगं ॥ १६ ॥ इधर महाराज श्रेणिक ने भी केरला नगरी जाने के लिए प्रस्थान कर दिया। एवं ये तो कुछ दिन मंजिल-दर-मंजिल कर विंध्याचल की अटवी में पहुँच कूरलाचल के पास ठहर गये। उधर विद्याधर जम्बू कुमार ने केरला नगरी में पहुँचकर रत्नचूल की सेना को ज्यों-की-त्यों नगरी घेरे हुए देखा और किसी कार्य के बहाने से रत्नचूल के पास जा उसने यह प्रतिपादन किया ॥१५-१६॥ श्रेणिकाय प्रदत्ता सा पुरा संयाच्यते कथं । खग न्याय वता सोऽपि तत्रेति वचनं जगौ ॥ १७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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