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श्रेणिक पुराणम्
रूपादिगुणसंपूर्णा जायास्य मालती लता। स्वसा मे स्वगते रद्रिसहस्रशृंगवासिनः ॥ ७ ॥ तयोविलासवत्याख्या सुतास्ति शुभलक्षणा। सयौवना नृपो वीक्ष्य तां मुनि पृष्टवान्मुदा ॥ ८ ॥
हे देव ! इसी जम्बद्वीप की दक्षिण दिशा में एक केरला नाम की प्रसिद्ध नगरी है। उस नगरी का स्वामी विद्याधरों का अधिपति राजा मृगांक है। राजा मृगांक की रानी का नाम मालती लता है जो कि समस्त रानियों में शिरोमणि एवं रूपादि उत्तमोत्तम गुणों की खानि है।
और महारानी मालती लता से उत्पन्न अनेक शुभ लक्षणों से युक्त विलासवती नाम की उसके एक पुत्री है। किसी समय पुत्री विलासवती को यौवनावस्था में देख राजा मृगांक को उसके लिए योग्यवर की चिन्ता हुई वे शीघ्र ही किसी दिगम्बर मुनी के पास गये और उनसे इस प्रकार विनय-भाव से पूछा ॥६-८।।
अस्याः कोऽत्रवरो भावी मुनिः श्रुत्वेति संजगी। मह्यां राजगृहे भूपः श्रेणिको भविता वरः ॥ ६ ॥
हे प्रभो ! मुने ! आप भूत, भविष्य, वर्तमान त्रिकालवर्ती पदार्थों के भली प्रकार जानकार हैं । संसार में ऐसा कोई पदार्थ नहीं जो आपकी दृष्टि से बाह्य हो। कृपाकर मुझे यह बतावें पुत्री विलासवती का वर कौन होगा?
राजा मृगांक के ऐसे विनय-भरे वचन सुन मुनिराज ने कहा-राजन् ! इसी द्वीप में अतिशय उत्तम एक राजगृह नाम का नगर है ! राजगृह नगर के स्वामी, नीतिपूर्वक प्रजा का पालन करनेवाले, महाराज श्रेणिक हैं। नियम से उन्हीं के साथ यह पुत्री विवाही जायेगी॥६॥
श्रुत्वेति भवते दातुमीहते यावदुन्नतः । तां हंसद्वीपतस्तावद्याचते स्म महाबलः ।। १०॥ नायं दत्ते मुनेर्वाक्यात्तावदागत्य वेष्टिता।। सा पुरी रत्नचूड़ेन वर्त्तते बलशालिना ॥ ११॥ विद्यावचनतश्चेत्थं ज्ञात्वा संगच्छता मया । वीक्ष्यास्थानं तवायातः कथनाय यथाकुरु ॥ १२ ॥
मुनिराज के ऐसे पवित्र वचन सुन, एवं उन्हें भक्तिपूर्वक नमस्कार कर, राजा मृगांक अपने घर लौट आये। और हे महाराज श्रेणिक ! तब से राजा मृगांक ने आपको देने के लिए ही
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