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श्रेणिक पुराणम्
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कुमार जा रहे हैं सेठी इन्द्रदत्त को यह पता लगा तो उन्होंने कुमार को न मालूम पड़े इस रोति से पाँच हजार बलवान योद्धा कुमार के साथ भेज दिये। एवं पाँच हजार सुभटों के साथ कुमार श्रेणिक ने राजगृह नगर की ओर प्रस्थान कर दिया। जिस समय वे मार्ग में जाने लगे उस समय उत्तमोत्तम फलों के सूचक उन्हें अनेक शकुन हुए। और मार्ग में अनेक वन-उपवनों को निहारते हुए कुमार श्रेणिक मगध देश के पास जा पहुँचे ।।७३-७८।।
आगतं ते परिज्ञाया जग्मुः सन्मुखमुन्नताः । सर्वे सामंतमंत्राद्या मुक्त्वा तं न्यायवर्जितं ॥ ७६ ।। वीताश्च दंतिनो रम्या वीतसंख्याः स्फुरत्प्रभाः । रथाः पदातयो संख्याः परिचेलुस्तदा नृपं ॥ ८० ।। तदानकमहाध्वानः स्थाययामासुरुत्तमं । राज्ये ते श्रेणिकं धीरं नमुस्तत्पदपंकजं ॥ ८१ ॥ ततः क्रमेण संप्रापद्राजगृहसमीपतां । नृपोऽमात्य सुसामंतपरिचर्य सुशासनः ॥ ८२॥
कमार श्रेणिक मगध देश में आ गये यह समाचार सारे देश में फैल गया। समस्त सामन्त मन्त्री एवं अन्यान्य देशवासी मनुष्य बड़े विनय भाव से कुमार श्रेणिक के पास आये और भक्तिपूर्वक नमस्कार किया। कुछ समय वहाँ ठहरकर प्रेमपूर्वक वार्तालाप कर कुमार फिर आगे को चल दिये। मेरु पर्वत के समान लम्बे-चौडे हाथी, अनेक बडे-बडे रथ और पयादेकमार केपीलेपीछे चलने लगे। कुमार के आगमन के उत्सव में सारा देश बाजों की आवाज से गूंज उठा, एवं कुछ दिन और चलकर कुमार राजगृह नगर के निकट पहुँच गये ॥७९-८२॥
सेनां तस्य दुरंतां च चलातीतुच्छसेनकः । अशक्यां जेतुमालोक्य विररामाजितस्तदा ।। ८३ ॥ ततः श्रेणिक वाक्येन गृहीत्वाऽखिलसंपदां । भयात्पल्लीं समासेदे दुर्गा सः पुण्यतः क्षयात् ।। ८४ ॥ शुभ्रातपत्र संछिन्न मित्र मंडल उन्नतः । ततः करि वरारूढः स चचालेद्ध पत्तनम् ॥ ८५॥ कामिनी कर संक्रांत सशब्दस्वर्णदंडकः । चलच्चामरवृदेश्च क्षीरोदधिजलप्रभैः ॥८६॥ वीज्यमानोऽतिपुण्यांक: प्रतापाहस्करः प्रभः । सामंतराजमुकुटमणिघृष्टपदाब्जक:
॥ ८७॥
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