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________________ ८८ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् एकाएक कुमार के मुख से ऐसे वचन सन सेठी इन्द्रदत्त आश्चर्य-सागर में निमग्न हो गये। अब कुमार यहाँ से चले जायेंगे, यह जान उन्हें बहुत दुःख हुआ। किंतु कुमार ने उन्हें अनेक प्रकार से आश्वासन दे दिया। इसलिए वे शांत हो गये। और उन्हें जबरन कुमार को जाने के लिए आज्ञा देनी पड़ी। सेठी इन्द्रदत्त से आज्ञा लेकर कुमार प्रियतमा नन्दश्री के पास गये। उससे भी उन्होंने इस प्रकार अपनी आत्मकहानी प्रारम्भ कर दी। हे प्रिये ! हे वल्लभे ! हे मनोहरे ! हे चन्द्रमुखी! हे गजगामिनी ! मेरे परम्परा से आया हुआ राज्य है अचानक मेरे पिता के शरीरांत हो जाने से मेरा भाई उस राज्य की रक्षा कर रहा है। किंतु प्रजा उसके शासन से संतुष्ट नहीं है। इसलिए अब मुझे राजगृह जाना जरूर है । हे सुंदरी जब तक मैं वहाँ न पहुँचूंगा, राज्य की रक्षा भली प्रकार नहीं हो सकेगी। इस समय मैं तुझसे यह कहे जाता हूँ जब तक मैं तुझे न बुलाऊँ अभयकुमार के साथ तू अपने पिता के घर ही रहना । राज्य की प्राप्ति होने पर तुझे मैं नियम से बुलाऊँगा इसमें सन्देह नहीं ॥६७-१२॥ इति कांतां सवाष्यांतां पूर्णचंद्राननां परां । आश्वास्य गमनौत्सक्यं धत्तेयावन्महामनाः ॥ ७३ ॥ पंचाशच्छतसंख्याढ्याः स्थायिनो गुप्तिरूपतः । प्रेषितास्तेन साकं च राज्ञा पूर्वं तदाखिलाः ।। ७४ ।। बभूवः सेवकाः सर्वे प्रकटाश्चापरे पुनः । अंगीकृताः प्रभुत्वेन राजांते तत्समीपगाः ॥ ७५ ।। जायां वस सुतां तत्रा स्थाप्याश्वास्य पुनः पुनः । सुभटै निर्जगामाशु स श्रेणिकमहीश्वरः ।। ७६ ॥ परया संपदा सत्रं वर्द्धमानश्च सेवकः । चचाल शकुनैः सारैः सूचित्तोदर्कसत्फलः ।। ७७ ।। मगधनीवृतं प्राप्तं घस्रः कतिपयः पुनः । राज्यद्धि समभूताढ्यः श्रेणिको धरणीधरः ॥ ७८ ।। अचानक ही कुमार के ऐसे वचन सुनकर रानी नन्दश्री की आँखों से टप-टप आँसू गिरने लगे। मारे दु:ख के, कमल के समान फूला हुआ भी उसका मुख कुम्हला गया। और कुमार को कुछ भी जवाब न देकर वह निश्चल काष्ठ की पुतली के समान खड़ी रह गई। किंतु उसकी ऐसी दशा देख कुमार ने उसको बहुत-कुछ समझा दिया। और संतोष देनेवाले प्रिय वचन कहकर शांत कर दिया। इस प्रकार प्रियतमा नन्दश्री से मिलकर कुमार वहां से चल दिये। और राजगृह जाने के लिए तैयार हो गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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