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________________ अमरसेणचरिउ णं सुरतरु पइपोसणु सुहहरु । णं जिणधम्मुपयडु थिउ वसवरु ॥९॥ जि णियजसि पूरियदाणि महि । जो णिय-सुहपालउ सुयण सुहि ॥१०॥ दिउराजु णामु चउधरिय सुहि । जिणधम्म-धुरंधरु धम्मिणिहि ॥११॥ विण्णाण-कुसलु वीयउ सुपुत्तु । जो मुणइ जिणेसर-धम्मसुत्त ॥१२॥ सुपवीण राय दावार कज्जि । गंभीरु ज सायरु बहु गुणज्जि ॥१३॥ झाझू चउधरिय विसुद्धभाइ । जो णिवमणु-रंजइ विविहभाइ ॥१४॥ अण्णु वि तीयउ रिसिदेव भत्तु । गिहभार-धुरंधरु कमलवत्तु ॥१५॥ चुगना णामें चउधरिय उत्तु । जो करइ णिच्च उवयारु तत्तु ॥१६॥ पुणु चउथउ णंदणु कुलपयासु । अवगमिय सयल विज्जाविलासु ॥१७॥ जिणसमयामयरस-तित्त चित्तु । छुट्टा गामें चउरिय उत्तु ॥१८॥ घत्ता ए चउ भाइय, जिणमइराइय, दिउराजु णामु गुरुवउ सुमई। गाणा सुह विलसइ, जइयण-पोसइ, णिय-कुल-कमलज्जु पुहई ॥५॥ [१-६] अण्णहिं दिणि जिणवरगंथ-दत्थु । सम्मत्तरयणलंकिय हियत्थु ॥१॥ गरु अरुह-गेहि दिउराजु साहु । चउर्धारय राय-रंजण-पयासु ॥२॥ भावें वंदिउ तहं पासणाहु । पुणु जिणगंथाणहं णविवि साहु ॥३॥ सिद्धंतअत्थ भाविध मणेण । पुरयणसुयारउ सुरधणेण ॥४॥ तहं दिट्ठउ पुणु सरसइ-णिवासु । माणिक्कराजु जिणगुरहं दासु ॥५॥ तेण वि संभासणु कियउ तासु । जो गोठि पयासइ वहु सुयासु ॥६॥ तं जिण-अंचण-पसरिउ भुवेण । अक्खिउ वुह सूराणंदणेण ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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