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________________ प्रथम परिच्छेद द्वारा जैनधर्म पर देह आवद्ध की गयी है, (जो) पुरजनों के स्वामी राजा के हृदय को इष्ट था। जो जिनेन्द्र के चरणोदक से पवित्र (था) । जिसका चित्त आगम-रस में मान रहता था। जिसने चारों प्रकार के संघों का व्ययभार वहन किया था और श्रावक के आचार को भली प्रकार पाला था। जो नित्य धर्म के मार्ग में विचरता था। चारों प्रकार के दान से ऐसा प्रतीत होता था मानो (वह) गन्धहस्ति हो। जिसने अपनो देह सम्यक्त्वरत्न से अलंकृत को थी। (जो) कनकाचल के समान निष्कम्प और धैर्यवान् था। परिजन रूपी श्वेत कमल-वन में वह सुधी हंस स्वरूप था। जिनेन्द्रभक्तों के बीच में जिसने प्रशंसा प्राप्त की थी। उसकी मृगनयनी दिउचन्दही स्त्री थी। (वह) जिन-श्रुत और गुरु की भक्त तथा शोल से पवित्र थी। उसने शील की खदान, अमृत के समान मिष्ठ भाषा-भाषी चौधरी महणा नाम का पुत्र उत्पन्न किया। वह धन-धान्य-स्वर्ण से सम्पन्न, पंडितों का पंडित और गुणों से महान् तथा शान्त (था) ॥१-१६।। घत्ता-वह दुखी जनों के दुःखों का नाश करनेवाला, बुधजनों के समूह का शासन करनेवाला, जिन-शासन रूपी रथ की धवल धुरी, विद्या और लक्ष्मी का घर, रूप से मानों समुद्र था। (इसने) अनिशि वैभव का विकास किया था ॥४॥ [१-५] चौधरी देवराज का कौटुम्बिक-परिचय (महणा को) खेमाही नाम की पत्नी देह में निबद्ध (प्राणों के समान) प्रेमी-प्रीतम (महणा) से प्रेम करती थी ॥१॥ देवगंगा की गति के समान मन्दगामिनी, व्रतों से लीला करनेवाली सती, शील से पवित्र (वह) परिवार का पोषण करनेवाली थी ।।२।। मनुष्य रूपी रत्न उत्पन्न करने की मानो खदान थी। वाणी-बोलने में वीणा वाद्य तथा कोयल के समान थी ।।३।। अपने सुहावने सौन्दर्य तथा वस्त्रों से श्री राम की सीता जैसी श्रेष्ठ दिखाई देती थी ।।४। उसके उदर से चार (पुत्र) रत्न उत्पन्न हुए। (वे ऐसे प्रतीत होते थे) मानो अनन्त चतुष्टय ही मनुष्य रूप धारण करके आ गये हों ।।५।। उन चारों में प्रथम पुत्र प्रसन्न मुख, लक्षावधि लक्षणों से युक्त, व्यसनों से मुक्त, अतुलित साहसी, सहस्रों को अकेले हो पकड़ लेनेवाला, गृह-सम्पदा के त्याग से (दानी) कर्ण के समान, पर्वत के समान धैर्यवान्, समुद्र के समान गम्भीर होने से ऐसा प्रतीत होता था मानों शेष नाग या विष्णु हों, दैवी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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