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________________ प्रस्तावना ५३ 1 ) = = द्रव्य । | परदेसिउ ( १ १६ - में । परवसि (१।१५ किलेस ( ७/३ ) = क्लेश | गणगउर ( १।१८/६ ) = गनगौर । घोल ( १/१९/६ ) = मिश्रण | चउमास ( १|२२|६ ) = चौमासा । १२ ) = चौराहा चंदोवा ( ५|४|१५ ) | छांह ( १|१५|९ ( १/७/५ ) = जीव । जीमइ ( १/१९/६ ) जीमता है । झूठा । थाण ( २।५।१३ ) स्थान विशेष | दाम ( १।३।६ ) दाहिण ( १1११1७ ) = दायां । परदेस ( ३|१३| २ ) ८ ) = परदेशी । परभवि - - ( १११९/१३ ) = पर भव 1१ ) परवश में | पहरुवा ( २|११|६ ) = पहरेदार | = पानी | फिरि ( २२७/१० ) = फिर भाइ ( १।५।१४ ) = भाई । भूलउ ( ५ । १६।२ ) भूल | मण ( ३/९/३ ) = मन | माला ( ६।७/९ ) = हार | मुणि ( ७/६/९ ) = मुनि । मुसेवि ( ४|११८ ) मूस कर । राते ( १/१९/५) रात । रोस ( ७|११ । ९ ) = क्रोध । वयरी ( १।१६।१७ ) = वैरी । वल ( दादा १५ ) ताकत | विलक्ख ( ५/२/१८ ) विलखता है । वुड्ढ ( ५|१|१४ ) = वृद्धा | वोलइ ( २|५|११ ) = बोलती है | सल्ल (५।१३।२) बाधा | हालि ( १११७/२ ) = तत्काल | हरिस ( ३|१२|१० ) = हर्ष से ि३|१|६ सीढि आदि । पाणी ( १ | १४१४ ) चउट्ट ( ५1१1 = छाया । जीउ झुट्टउ (२/६७) = शैली प्रत्येक कवि या लेखक को लेखन शैली में कोई न कोई विशेषता अवश्य रहती है । पण्डित माणिक्कराज की लेखन शैली रोचक है। पढ़ते समय आगे-आगे को विषय-वस्तु जानने को अभिलाषा बनी रहती है । कवि ने कथा को रोचक बनाने के लिए अन्य कथाओं को भी गुम्फित किया है । Jain Education International 1 इलेप के माध्यम से नगर वर्णन रोचक बनाये गये हैं । उदाहरणार्थ द्रष्टव्य है ऋषभपुर नगर वर्णन । इस प्रसंग में कवि ने लिखा है कि इस नगर में दण्ड (यष्टि ) छातों में ही था अर्थात् प्रजा में दण्ड व्यवस्था नहीं थी । इसी प्रकार भग्नता-विधुरजनों में, मार- इक्षुसार पर, मद- हाथियों में, स्वच्छन्दता - सिंह में, करपीडन - पाणिग्रहण में, शारीरिक मलिनता - मुनियों में, याचना- - शिशुओं में, कृपणता - मधुमक्खियों में, पक्षपात - पक्षि-संघात में, रक्तिमा - खगमुख में, कलह - रमण प्रसंग में प्रियवियोग-नख-छेदन में, गहनपूर्णिमा के चाँद में, मानभंग - पर अनुराग में, निर्गुणता - इन्द्रधनुष में और शारीरिक कठोरता - स्त्रियों के स्तनों में ही थी । इसका तात्पर्य है ये दोष प्रजा में नहीं थे ( १|१२|१-८ ) । कवि ने नगर-वर्णन प्रसंग में नगरों का और वन-वर्णन प्रसंग में वनों का सांगोपांग वर्णन किया है। वन वर्णन में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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