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________________ प्रस्तावना ५१ ३२. कुछ वर्ण रेफ युक्त नहीं होकर भो द्वित्व रूप में प्रयुक्त हुए । यथा खग्ग ( खड्ग ) ६।५ । पुग्गल ( पुद्गल ) १।१६।१३ | ३३. कुछ संस्कृत शब्द पूर्णतः परिवर्तित होकर प्रयुक्त हुए हैं। यथाखुद (क्षुद्र ) १|३|१४ । खुत्त ( क्षुब्ध ) ५|२७| १४ | पुहइ ( पृथिवो ) ५|२१| १६ | खउ ( क्षत्र) १।१७/८ । ३४. शब्दों में वर्णों का क्रम भंग भो हुआ है । यथा रहस ( हर्ष ) ११९/१७ । विहयसर ( विहसकर ) १।१० | ३५. अकारान्त शब्दों में प्रथम एवं द्वितीया के एक वचन रूपों में शब्दों के अन्तिम अ के स्थान में उ प्रयुक्त हुआ है । यथा - करमचंदु ( करमचन्द्रः ) ११४१७, दासु ( दासः ) १।४।७, चित्तु ( चित्तः ) ११४/९, हंसु ( हंस: ) १|४|१३ आदि । ३६. तृतीया विभक्ति के एक वचन में एँ, ए और एण प्रत्यय शब्दों के अन्त में प्राप्त होते हैं । यथा - जॅ ( जेन ) १ २ १, जेण ( जेन ) ११२२, रू ( रूपेण ) १४, जिनचरणादयेण (जिनचरणोदयेन ) / ११४/९ आदि । ३७. तृतीया विभक्ति के बहु वचन में एकार तथा हि प्रत्यय का आदेश प्राप्त होता है । यथा ललियक्खरेहि ( ललितच्छरैः ) १|१०|१४ । सहेहि ( स्मरैः ) १।१०।१४ । ३८. अकारान्त शब्दों में पञ्चमो विभक्ति के एक वचन में हं, एं और इ तथा सुप्रत्यय शब्द के अन्त में पाये जाते हैं। यथा तवहं ( तपात् ) १२।१२ । वयर्णे ( वचनात् ) १७ । भावें (भावात् ) १|६| ३ | सद्दे ( शब्दात् ) १९/२० । तासु ( तस्मात् ) १/६/५ । उवरि ( उदरात् ) १/५/५ । ३९. अकारान्त षष्ठी बहु वचन के रूपों में सु और हं प्रत्यय प्रयोग में आये हैं । यथा तासु ( तेषाम् ) १२/३ । जोवहं ( जीवानाम् ) १।१८।२१० । ४०. किवाओं में संस्कृत प्राकृत का प्रभाव है । कुछ किया रूप ऐसे भी व्यवहत हुए हैं जो आधुनिक भाषाओं से निर्मित हुए हैं। यथापीटड = पीना है ( १।१४।४ ) । रोवइ = रोता है ( २१९११ ) । कढिज्जर = काढ़ दें ( ४१५७ ) | कहइ = कहता है ( १/९/१४ ) | चडि = चढकर ११९/२१ | घटइ = घट जाता है १।१८।७। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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