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________________ ५० अमरसेणचरिउ तिन्नि १।१५।३, नर १।१५।१०, चुन्न चुन्न १।१५।७, नासा, कन्न १।१५।१०, वन्नी १।१५।११, नहु १।१६।७, निक्कलसि १।१६।९, नाहि १।१६।१४, नही १।१६।१९, मन्नइ १११६।२०, मन १।१६।२२, नियम १।१९।१०, धन्न, १।१९।१५ । २०. प के स्थान में व और उ के प्रयोग । यथा तव ( तप) १।२।८ । गोउर ( गोपुर ) १।१२।१९ । २१. फ के स्थान में ह का प्रयोग । यथा सहलु ( सफलु) ५।१७।१३ । २२. ब के स्थान में सर्वत्र व का प्रयोग हुआ है। २३. भ के स्थान में ह के प्रयोग । यथा चंदप्पह ( चंदप्रभ ) ११११६ । आहरण ( आभरण ) १।९।१६ । २४. य के स्थान में ज के प्रयोग । यथा पुज्जु ( पूज्य ), सुज्जु ( सूर्य ) १११३८ । जुत्तु ( युक्त.) १।९।५ । २५. व के स्थान में इ का प्रयोग । यथा का (कवि) १७।४।। २६. श के स्थान में ह का प्रयोग । यथा दहदिहि ( दशदिशि ) ११७८ । २७. श्र के स्थान में स का प्रयोग । यथा सावय (श्रावक ) १।११।१ । २८. त्स और प्स के स्थान में च्छ के प्रयोग । यथा . वच्छलु ( वात्सल्य ) ११२०१४ । अच्छर ( अप्सरा ) ४।१२।१ । २९. सामान्यतः र युक्त वर्ण द्वित्व वर्ण में प्रयुक्त हुए हैं । यथा-चंद्रप्रभ चंदप्पहु ११११५, अनुक्रम में अनुक्कमि १।२।३, निर्ग्रन्थ-निग्गंथ १।२।१०। ३०. सरेफ वर्ण द्वित्व रूप में सामान्यतः प्रयुक्त हुए हैं। यथा-सूर्य सुज्जु १११७, धर्म-धम्म १।११९, कर्म-कम्म १।१।१२, निर्जितणिज्जिउ २२।४, कत्ति-कित्ति श२।८, हर्य-हम्म १३५, मार्ग-मग्ग ११३७, वर्ण-वण्ण १।३।१०, पूर्ण-पुण्ण १।३।११, दुर्जन दुज्जण १।३।१४। ३१. ल्य और व्य क्रमशः ल्ल और व्व में प्रयुक्त हुए हैं। यथा-- कल्याण-कल्लाण १११।१५ । सल्य-सल्ल १।३।३ । भव्य-भव्व १।२।५, दिव्य-दिव्व ११३।१०, काव्य-कव्वु ११७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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