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________________ प्रस्तावना ३५ माता का पुत्र-स्नेह : माता को पुत्र का वियोग असह्य बताया गया है। रानी विजयादेवो पूत्र-वियोग में विलख-विलख कर रोती है। उसकी वेदना देखकर मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी रुदन करते बताये गये हैं ( २।९।१-५ )। विमाता : वह स्त्री जिसने जन्म नहीं दिया किन्तु जिस सन्तान का उसने पालन किया है कवि ने उसे सौतेली माता की संज्ञा दी है। प्रस्तुत ग्रन्थ में इसका निंद्य रूप दर्शाया गया है। अपने यहाँ आये और यौवन अवस्था को प्राप्त हए अमरसेन बइरसेन पर ईर्षा वश दोषारोपण करके हस्तिनापुर नरेश की रानी देवश्री राजा से उन्हें मारने का आदेश कराने में भी संकोच नहीं करती (२।५।२-८, २।६।८-१०, २१८२, २११२)। इससे सिद्ध है सौतेली माता अपने द्वारा पोषित सन्तान पर वैसा स्नेह नहीं करती जैसा वह अपने औरस पुत्र को स्नेह देती है। भ्रातृ-स्नेह : कवि ने इस ग्रन्थ में भ्रातृ-स्नेह का आदर्श प्रस्तुत किया है। ग्रन्थ में धण्णंकर और पुण्णंकर दो भाई बताये गये हैं। इनमें बड़ा भाई अभयंकर सेठ के घर स्वयं काम करता है। वह अपने छोटे भाई को काम करने नहीं भेजता । धार्मिक चर्चा करने में बड़ा भाई अपने छोटे भाई से परामर्श करने में कोई संकोच नहीं करता। इस प्रकार कवि ने इन भाइयों में बड़े भाई को अपने छोटे भाई के प्रति हार्दिक स्नेह देते हुए बताया है ( १।१३।९-१३ )। इसी प्रकार अमरसेन और बइरसेन दोनों भाइयों का पारस्परिक स्नेह भी उल्लेखनीय है । सघन वन में एक आम्रवृक्ष के नीचे छोटे-भाई बइरसेन का रात्रि में पहरा देना और बड़े भाई अमरसेन का विश्राम करना तथा राज्य प्राप्त करानेवाला फल अपने बड़े भाई को देना, बड़े भाई को भोजन कराने के पश्चात् भोजन करना, छोटे भाई का बड़े भाई के प्रति प्रकट किये गये स्नेह का परिचायक है (२।११।६, २।१२।१०, २।१३।५, ३।१।२-४)। जैसा स्नेह छोटे भाई का अपने बड़े के प्रति ऊपर दर्शाया गया है ऐसा हो बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति प्रकट किया गया स्नेह भी प्रस्तुत ग्रन्थ में बताया गया है। बड़े भाई अमरसेन को अपने छोटे भाई बइरसेन के विश्राम का भो ध्यान रहना, रात्रि में जागकर उसे सुलाना और स्वयं पहरा देना, बिछुड़ जाने पर उसकी खोज कराना और मिल जाने पर उसे उचित सहर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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