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________________ ३६ अमरसेणचरिउ सम्मान देना, युवराज पद देना आदि ऐसी क्रियाएँ हैं जिनसे बड़े भाई का अनुज - स्नेह प्रकट होता है ( २११२।१९-२० ३।३।४-६, ३ ४२४, ५।४ ) । नारी स्वभाव : प्रस्तुत ग्रन्थ में लज्जा नारी का आभूषण कहा है । कवि के अनुसार लज्जा विहीन स्त्रियाँ स्वेच्छाचारिणी होती हैं । वे अपने पति को कुछ भी कहने में संकोच नहीं करती । राजा यशोधर अपनी रानी के द्वारा इसीलिए मारे गये थे और इसीलिए ही रत्तादेवी ने अपने पति का घात किया था ( २।१०।६-९ ) । कवि की यह भी मान्यता है कि प्राण कंठ गत हो जाने पर भी पुरुष अपनी गुप्त बात स्त्री से प्रकट न करे क्योंकि वह दूसरों के समक्ष उस गुप्त रहस्य को प्रकट किये बिना नहीं रहती । पुण्डरीक ब्राह्मण ने अपना भेद अपनी स्त्री को बताकर अनेक कष्ट उठाये थे ( ३७ ) | भेद लेकर स्त्री दुःख ही देती है । चारुदत्त को परदेश में इसलिए भटकना पड़ा था । गोपवती का भी एक ऐसा ही उदाहरण है ( ३|१३|१-८) । वेश्या स्वभाव : कवि ने कथा के माध्यम से वेश्या की कपट एवं लोभवृत्ति का निर्देश किया है, तथा बताया है कि वेश्यागामी पुरुष किस प्रकार दुःखी होता है । इस सम्बन्ध में उन्होंने बइरसेन का उदाहरण प्रस्तुत किया है । बइरसेन कंचनपुर की वेश्या के यहाँ आता है ! बिना किसी व्यापार के बइरसेन के पास प्रचुर धन देखकर वह इसका गुप्त भेद जानना चाहती है ( ३|४|५-७ ) और बइरसेन भी वह द्रव्य प्राप्ति का रहस्य उसे प्रकट कर देता है ( ३।६।१०-१२ ) । वेश्या - द्रव्य देनेवाले आम्रफल को लेकर बइरसेन को अपने घर से निकाल देती है । ( ३।७।५ ) । बइरसेन कथरी, पांवडी और लाठी पाकर पुनः कंचनपुर आया ( ४|३|७-९ ) । वेश्या उसे देखकर माया पूर्ण वचन कह करके घर ले जाती है तथा कपट पूर्वक उसकी आकाशगामिनी पांवड़ी ले लेती है ( ४/६ ) | बइरसेन बार-बार ठगे जाने से रुष्ट हुआ । कटता है इस नीति के अनुसार वेश्या के कपट व्यवहार का कपट व्यवहार से ही दिया । बइरसेन द्वारा उसे गधी का रूप तथा वह बहुत सतायी गयी ( ४।१२।६-१० ) । लोहा लोहे से उत्तर उसने दिया गया वेश्या के स्वभाव का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि वह लोक में छोटा या बड़ा नहीं जानती । वह केवल द्रव्य का विचार करती है । द्रव्यवान् को ही वह सन्मान देती है । जो धन हीन होता है उस पुरुष को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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