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________________ प्रस्तावना है । उसकी चार प्रकार की सेना थी-पैदल सेना, अश्व-सेना, गज-सेना और रथ-सेना । इनमें पैदल और अश्व-सैनिकों की संख्या दस करोड़ तथा हाथी और रथ-सेना को संख्या चौरासी लाख बतायी गयी है। यह सेना युद्ध करती और राजा की विजय कराती थी। आयुध चक्रवर्ती के घर स्वयं प्रकट होते हैं ( ६।१३।५-९ )। कभी-कभी राजा सेना का सहयोग भी नहीं लेते थे और प्रजा की रक्षा के लिए अकेला ही शत्रु का सामना करने दौड़ जाता था ( ४।१३।१९-२१ ) । राज्य-विस्तार के लिए सैन्यबल का प्रयोग होता था। राजाओं को बल प्रयोग से अपने आधीन किया जाता और विजित राजाओं की कन्याएँ विवाही जाती थों ( ५।५।१५ )। राजा वन क्रीड़ा के समय सेना भी साथ रखते थे (५।६७)। राजा के लिए सेना का बड़ा महत्त्व था। ___ कोष : राज्य संचालन के लिए राजा के पास कोष होता था। इसका प्रयोग राजा की आज्ञा से होता था । कोष के साथ नगर आदि भी राजा जिस किसी को देकर सहायता कर सकता था ( २।२।१५, ३।३।११)। प्रस्तुत ग्रन्थ में मुद्रा के अर्थ में 'दीनार' शब्द का व्यवहार हुआ है (३।१।१० )। सामाजिक स्थिति कवि माणिक्कराज ने प्रसंगानुसार सामाजिक स्थिति का भी निर्देश किया है। उन्होंने नगर वर्णन में समाज को चार वर्गों में विभाजित बताया है (१।३।१०) तथा उनके अर्हन्त-भक्त होने का निर्देश भी किया है ( ११९।६ )। चारों वर्गों में क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण की स्थापना प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने की थी' तथा ब्राह्मण वर्ण प्रथम चक्रवर्ती भरतेश द्वारा स्थापित किया गया था।२ प्रस्तुत ग्रन्थ में वणिक् वर्ग का उल्लेख व्यापारी अर्थ में हुआ है (१३।६) । आचार्य जिनसेन ने जिस वर्ग को वैश्य की संज्ञा दी तथा जिनका कार्य कृपि, वाणिज्य और पशुपालन करना बताया है, समाज के उस वर्ग को ही कालान्तर में सम्भवतः वणिक् संज्ञा दी गई। कृपि और पशुपालन को अपेक्षा व्यापार ही इस वर्ग की जीविका का प्रमुख साधन १. महापुराण : १६।१८३ । २. वही, ३८।१-४७ । ३. वही, १६।१८४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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