SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमरसेनचरिउ रानी : कवि ने पटरानी को “पट्टमहादे' संज्ञा दी है ( १।१३।२), तथा उसके उन्नत चरित्र का उल्लेख किया है। अमरसेनचरिउ में मगध नरेश राजा श्रेणिक की रानी चेलना के जिनशासन की भक्त बतायी गयी है ( १।९।८)। इसी प्रकार राजा अरिमर्दन की रानी देवलदे जिनगुरु के चरणों की भक्त और शील की खान कही गयी है ( १।१३।३) । राज्याभिषेक : ऐसे अवसरों पर जिसका राज्याभिषेक किया जाता, भाट उसकी स्तुतियाँ गाते, मंगल वाद्य बजाये जाते, स्त्रियाँ मंगल गीत गातीं । उत्सवपूर्वक राजा हो राज सिंहासन पर बैठाकर राजपट्ट बाँधा जाता था। इस क्रिया के पश्चात् उसे राजा माना जाता था ( ३।३।१-४) । सहिष्णुता : सहिष्णु होना राजा का विशेष गुण था। उपकारी का उपकार करने के तो साहित्य में अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं किन्तु अपकारी का उपकार करना बिरले ही राजाओं में देखा गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में राजा अमरसेन अपने वध की आज्ञा देनेवाले राजा देवदत्त ताउ को बलवाकर सादर सिंहासन पर बैठाते हए बताये गये हैं (५।५।१०-२०)। यह है जैनदर्शन का प्रभाव और जैन साहित्य की अनूठी देन । कृतज्ञता : राजा अपने कर्मचारी को सेवाओं का आदर करते थे । कंचनपुर के राजा अमरसेन ने अपने एक कोतवाल की सेवाओं का आदर करते हुए उसे दिव्य नये वस्त्र भेंट में दिये थे। इतना ही नहीं, नगर के बाहर उसे रहने के लिए भूमि देकर अपने देश में उसके गुणों की अनुशंसा करते हुए कृतज्ञता प्रकट की थी ( ५।६।२-४ ) । मंत्री : राजकीय व्यवस्था में मन्त्रियों का महत्त्वपर्ण योगदान रहा है। यह राजा का परामर्षक होता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में कंचनपूर के राजा पुत्र विहीन बताये गये। उत्तराधिकारी की खोज करने में मंत्रियों की सूझ-बूझ उल्लेखनीय है । वे एक हाथी की सहायता से अपने राजा का चयन करते हैं ( ३।२।१-१७)। सेनापति : राज्य संचालन के लिए मंत्री के समान सेनापति की नियुक्ति की जाती थी। यह राजा का परम हितैषी होता था। सैन्यसंचालन करना इसी का कार्य था । घनवाहन का नामोल्लेख एक ऐसे ही सेनापति के रूप में हुआ है। (६।१३।७)। सेना : प्रस्तुत ग्रन्थ में सेना के लिए बल और सेना शब्दों का प्रयोग हुआ है । चक्रवर्ती राजा की सेना सभी राजाओं की अपेक्षा अधिक होती थी । इस ग्रन्थ में रत्नशेखर को एक चक्रवर्ती नप के रूप में बताया गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy