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________________ प्रस्तावना २९ अन्तर्गत तत्कालीन सामाजिक स्थिति को दर्शाने हेतु प्रसंगानुसार राजनैतिक, सामाजिक, दार्शनिक, धार्मिक, भौगोलिक और साहित्यिक विधाओं का भी प्रस्तुत ग्रन्थ में कवि ने सुन्दर रीति से उल्लेख किया है। राजनैतिक मूल्यांकन राजा : नगर के सर्वमान्य एवं सर्वश्रेष्ठ नागरिक को नृप कहा गया है । ये अनुराग पूर्वक प्रजा की रक्षा करना अपना कर्त्तव्य समझते थे । (५।५।१ ) । अमरसेन को ऐसा ही सेवा परायण राजा बताया गया है। वे प्रजा की रक्षा के लिए अपनी रक्षा का भी ध्यान नहीं रखते । सेना लिए बिना ही वे प्रजा की रक्षा करने शत्र की ओर दौड़ पड़ते हैं (४।१३।१९-२१ ) । राजकीय कर्मचारी के मारे-पीटे जाने पर भी राजा कुपित होकर शत्रु पर आक्रमण करते थे ( ४।१३।१३ ) । चक्रवर्ती राजा का वैभव विशाल होता था। वह चौदह रत्न और नौ निधियों का स्वामी बताया गया है ( ६-१३।५-९)। राजपद : सामान्यतः राजा का पुत्र सिंहासन पर बैठता था। जब राजा की कोई सन्तान नहीं होती तब राजा के परिजन राजपद पाने को झगड़ते थे । ऐसी परिस्थिति में मंत्रियों से परामर्श किया जाता था तथा मंत्री भी सर्वमान्य कोई उपाय बताते थे। प्रस्तुत ग्रन्थ में कंचनपुर नरेश को निस्संतान बताया गया है । योग्य उत्तराधिकारी के अभाव में मंत्रियों के परामर्श पर हाथी को निर्णायक बनाया गया। हाथी ने नगर में किसी को भी राजा के योग्य नहीं पाया। वह नन्दन वन को ओर गया और उसने वहाँ अमरसेन का अभिषेक किया । पश्चात् अमरसेन कंचनपुर के स्वामी हुए ( ३।२।१-१७ ) । राजाओं में मैत्री भाव : राजाओं की मित्रता में स्थायित्व दिखाई नहीं देता । दलबट्टन नगर के राजा सूरसेन को हस्तिनापुर का राजा देवदत्त बहुत चाहता है। उसने सूरसेनको देश, घोड़े, हाथी, चमर, छत्र और कोष दिया। सूरसेन रानी विजयादे सहित मित्र के स्नेहवश मित्र के साथ हस्तिनापुर में ही रहने लगा था। उसके अमरसेन और वइरसेन दोनों पुत्र यहीं हुए थे ( २।२।५-२०) ___ राजा देवदत्त ऐसा ही हितैषी होकर भी अपनी रानी पर प्रतीति करके अपने मित्र का अहित करने में भी पीछे नहीं रहा । उसने रानी के दोषारोपण करने पर राजा सूरसेन के पुत्रों के वध करने का चाण्डालों को आदेश दिया ( २।६।८-१० ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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