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________________ २८ अमरसेनचरिउ विहार के समय गन्धोदक की वर्षा होती है। धर्मचक्र आगे-आगे चलता है। (१।१०।६-७ )। __ कवि ने ऐसे देव को अर्हन्त संज्ञा दी है तथा नमन किया है। उन्होंने ऐसे देवों को पुज्य नहीं बताया जो संसार चक्र में फंसे हुए हैं (१।१८।४-८)। इसके पश्चात् कवि ने अर्हन्तदेव की वाणी को आराध्य माना है और उसे नमन किया है। (११) । अर्हन्त और अर्हन्त की वाणी को नमन करने के पश्चात् कवि ने गौतम-गणधर की परम्परा में हए अपने गुरु निर्ग्रन्थ, तपस्वी क्षीणकाय पद्मनन्दि को प्रणाम किया है ( १।२।१-१४ ) । इस प्रकार क व ने अन्य रागी-द्वेषी देवों का निषेध करते हए अर्हन्त, अहंत वाणी और गरु इन तीन को देव संज्ञा देकर उन्हें त्रिकाल आराध्य बताया है ( ५।५।७)। इनकी पजा दुर्गति से निकालनेवाली कही है। कुमार्ग से सुमार्ग पर लाने में ये ही देव समर्थ हैं ( १।२०।१८, ७।११।१ ) । जिनेन्द्र बन्दना : प्रस्तुत ग्रन्थ में वन्दना के दो रूपों का उल्लेख किया गया है--प्रत्यक्ष वन्दना और परोक्ष वन्दना । इनमें आराध्यदेव के समक्ष उनकी तीन प्रदक्षिणाएं देकर उन्हें नमन करना प्रत्यक्ष वन्दना है। परोक्ष वन्दना-आराध्यदेव की अनुपस्थिति में होती है। आराध्यदेव के निकट या दुरवर्तों प्रदेश में विराजमान होने पर उनकी वहाँ की उपस्थिति का बोध करानेवाली सूचना के मिलने पर जिस दिशा में आराध्यदेव विराजमान होते हैं उस दिशा में आगे सात पद चलकर सहर्ष करबद्ध शिरोनति की जाती है। (१।९।१७-१९, १।१०) । आहार-दान-फल : कवि ने कथा के अन्तर्गत निर्ग्रन्थ मुनि को आहार देने का फल स्वर्गीय-सुख दर्शाया है । इस दान में भावों की प्रधानता पर जोर दिया गया है। ___ ग्रन्थ में अमरसेन-वइरसेन दोनों भाइयों के मुनियों को आहार देने के भाव उत्पन्न होना और आकाश मार्ग से युगल चारण मुनियों का वहाँ आना, दोनों भाइयों का उन्हें आहार में अपना भोजन देना और चारों प्रकार के आहार का तथा समाधिपूर्वक देह का त्याग करके सनत्कुमार स्वर्ग में उत्पन्न होना दर्शाकर कवि ने उत्तम पात्र की आहार दिये जाने का माहात्म्य प्रकट किया है ( १।२२।१३-२१,१।२२,२।१,२।२।१ )। संस्कृति : अमरसेनचरिउ में केवल कथा मात्र नहीं है। कथा के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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