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________________ अमरसेनचरिउ व्रत में पात्र को आहार देना होता है। इन व्रतों के साथ-साथ रात्रिभोजन और अनछने पानी के व्यवहार का त्याग भी अपेक्षित होता है (५।९।१-७) । दशलक्षण धर्म धारण करना, चतुर्विध संघ को दान देना, प्राणियों पर दया करना और आगम सुनना भी श्रावकधर्म है ( १।२०)। कवि ने पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतों की अनुपालना को शुभगति-मोक्ष का कारण बताया है (५।१६।६-७)। मुनि धर्म : संसार को अस्थिर जानकर संयम धारण करना, पापों से मुक्त होना, चारों कषायों और इन्द्रियों की विषय-प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना तथा बारह प्रकार का तपश्चरण करके कर्मों का नाश करना मनि-धर्म कहा गया है। मोक्ष के लिए इसका धारण करना आवश्यक है ( १११७९-११)। कर्म व्यवस्था : पण्डित माणिक्कराज ने जैनदर्शन की कर्म-व्यवस्था का भी प्रस्तुत ग्रन्थ में उल्लेख किया है। उन्होंने सुख और दुःखों का पर को. निमित्त न मानकर उन्हें शुभ और अशुभ कर्मों का परिणाम माना है। अजित कर्म जीव के साथ रहते हैं । वे छूटते नहीं। फल देकर ही जाते हैं ( २।८। ३-४, ५।५।१८-१९, ५।१३।६)। ___ जीव को जन्म, जरा और मरण रहित स्थान-मोक्ष तभी प्राप्त होता है जब अजित कर्म गल जाते हैं ( ३।२।१३-१४ ) तथा कर्म तभी गलते हैं जब बारह प्रकार का तप किया जाता है। कषायों को जीता जाता है और इन्द्रियों तथा मन को विषयों की प्रवृत्ति से निवृत्ति में लगाया जाता है ( १।१७।१०-११ )। अर्हन्त की द्रव्य पूजा : जिनेन्द्र-अर्हन्त की पूजा में कवि ने निज द्रव्य पर विशेष जोर दिया है। उन्होंने पूजा से होनेवाले पुण्य की प्राप्ति उसे बताई है जिसकी द्रव्य पूजा में व्यवहृत होती है, उसे नहीं जो पूजा करता है। इस पबन्ध में द्रा है निम्न यमक ते भणहि जस्स हम फुल्ल लेहि लहु पुण्णु होइ हमि तं ण तेहि ।। १।२१।६ निज द्रव्य कम भले ही हो किन्तु उसका अपना अलग महत्त्व है। प्रस्तुत ग्रन्थ में केवल पाँच कौड़ियों से खरीदकर पाँच पुष्प अपने चढ़ाये. जाने के पुण्य से वइरसेन को पाँच सौ रत्न देनेवाले आम्रफल, सात सौ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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