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________________ प्रस्तावना काष्ठा संघ का सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख मध्यप्रदेश में दुबकुण्ड ( श्योपुर ) से प्राप्त हआ है। यह विक्रम संवत् ११४५ का है। इस प्रशस्ति में देवसेन नामक एक ऐसे आचार्य का नामोल्लेख है जिन्हें लाडबागड गण का श्रेष्ठ गुरु कहा गया है । कुलभूषण मुनि इनके शिष्य थे और दुर्लभसेन सरि कुलभपण मुनि के । दुर्लभसेन के शिष्य थे शान्तिषण और शान्तिपेण के शिष्य थे विजयकोत्ति ।' इससे ठीक सात वर्ष पश्चात् संवत् ११५२ का इसी स्थान के एक स्तम्भ पर अंकित चरणों पर दो पंक्ति का लेख मिला है जिसमें देवसेन को काष्ठासंघ का महाचार्य बताया गया है। इन उल्लेखों के परिप्रेक्ष्य में ज्ञात होता है कि काष्ठासंघ का लाडवागड एक गण था । इस संघ के चार गण बताये गये हैं-नन्दितट, माथुर, वागड और लाडवागड । पुष्करगण का उल्लेख इस संघ के साथ पन्द्रहवीं शताब्दी से आरम्भ हुआ ज्ञात होता है। पंचास्तिकाय विक्रम संवत् १४६८ में काष्ठासंघ, माथुरगच्छ और पुष्करगण के श्रावकों द्वारा लिखाया जाना इस तथ्य का प्रमाण है।४ काष्ठासंघ के नन्दितट, माथुर और वागड गण बारहवीं सदी के पूर्व तक संभवतः स्वतंत्र रहे हैं। इसके पश्चात् ही कभी काष्ठासंघ से इनका सम्बन्ध हआ है। महाचार्यवर्य देवसेन संभवतः काष्ठासंघ के संस्थापक थे । उनकी चरण पादुकाएँ सं० ११५२ में स्थापित किया जाना और उन्हें महाचार्यवयं कहा जाना इस सम्बन्ध में ध्यातव्य है। _आचार और सिद्धान्त पौराणिक ग्रन्थों में मूल कथा के अन्तर्गत आचार एवं सिद्धान्तों का १. श्री लाटवागटगणोन्नत रोहणाद्रि , __ माणिक्यभूतचरितो गुरु देवसनः ।। -एपिग्राफिया इण्डिका : जिल्द २, पृ० २३२-२४० । २. संवत् ११५२ वैसा ( शा) ख सुदि पंचम्यां । श्री काष्ठासंघ महाचायंवयं श्री देवसेन पादुका युगलम् ॥ -कनिंघम, आर्कि० सर्व्ह रिपोर्ट : जिल्द २०, पृ० १०२ । ३. पं० परमानन्द शास्त्री, जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह : भाग २, प्रस्तावना १० ५९ । ४. भट्टारक सम्प्रदाय : लेखांक ५५५ पृ० २१७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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