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________________ २० अमरसेनचरिउ भंडारी श्री जयसवाल वंशाम्नाये श्री पंचदशलाक्षणोकव्रतपालकान् पंचमी उद्धरण धीर साधुवस्थावंसे तस्य भार्या शीलतोयतरंगिनी विनय वागेश्वरी तस्य नाम सुनखी । तत्पुत्र तृतीय ज्येष्ठ पुत्र गुण गरि साधु दासू भट्टारक पंडित माणिक्कराज ने अपनी गुरु परम्परा के सन्दर्भ में पाँच निर्ग्रन्थ साधुओं का नामोल्लेख किया है । वे हैं - खमकीत्ति, हेमकीत्ति, कुमारसेन, हेमचन्द्र और पद्मनन्दि ।' ये किस संघ, गण, गच्छ के थे इसका कवि ने उल्लेख नहीं किया है । उन्होंने यह अवश्य कहा है कि ये एक ही पट्ट पर एक के बाद एक आसीन होते रहे । पट्ट परम्परा भट्टारकों में प्रचलित रही है | अतः ये साधु भी भट्टारक ज्ञात होते हैं । इधू साहित्य में रइधू- कालीन भट्टारकों में गुणकीत्ति, यशःकीत्ति, पाल्हब्रह्म, खेमचन्द्र, मलय कीर्ति, गुणभद्र, विजयसेन, खेमकीत्ति, हेमकीत्ति, कमलकीत्ति, शुभचन्द्र और कुमारसेन के नाम आये हैं तथा इन्हें काष्ठासंघ, माथुरगच्छ और पुष्करगण से सम्बन्धित बताया गया है । " अमरसेनचरिउ में उल्लिखित साधुओं में खेमकीत्ति, हेमकीति और कुमारसेन के नामों का उल्लेख रइधू साहित्य में काष्ठासंघ, माथुरगच्छ और पुष्करगण के भट्टारकों के साथ किये जाने से अमरसेनचरिउ में उल्लिखित लेखक की गुरु परम्परा से सम्बन्धित सभी साधु काष्ठासंघ, माथुरगच्छ और पुष्करगण के भट्टारक रहे ज्ञात होते हैं । अमरसेनचरिउ की प्रतिलिपि प्रशस्ति से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रतिलिपिकार काष्ठासंघ, माथुरगच्छ और पुष्करगण के भट्टारकों की आम्नाय का था तथा इस आम्नाय की सोनीपत में संवत् १५७७ में गद्दी विद्यमान थी । इस प्रशस्ति में रइधूकालीन इस संघ, गण, गच्छ के चार भट्टारकों के नामों का उल्लेख हुआ है । वे हैं - गुणकीत्तिदेव, यशकीर्तिदेव, मलयकीर्त्तिदेव और गुणभद्रसूरिदेव | कवि माणिकराज की दूसरी रचना नागसेनचरिउ की प्रतिलिपि प्रशस्ति में भी काष्ठासंघ, माथुरगच्छ और पुष्करगण के भट्टारकों का उल्लेख हुआ है । जिन भट्टारकों के नाम आये हैं, वे हैं - मलय कीत्तिदेव, गुणभद्रदेव, क्षी (क्षे ) मकोत्तिदेव और धर्म भूषणदेव | 3 १. अमरसेनचरिउ सन्धि-१, कडवक दुसरा । २. रइधू ग्रन्थावलि भाग १, वही, भूमिका पृष्ठ ९ । ३. दे० इस प्रस्तावना में नागसेनचरिउ -- परिचय | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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