________________
अमरसेनचरिउ
लाकर गधे को सँघाया। गधा वइरसेन बन गया। पश्चात् गुप्त रूप से दोनों प्रकार के फूल लेकर विद्याधर की सहायता से वइरसेन कंचनपुर आया। ___ इसकी पुनः वेश्या से भेंट हुई। वेश्या ने कपटपूर्वक विद्याधर द्वारा अपने कंचनपुर भेजे जाने तथा पाँवड़ी अपने साथ ले जाने का वृत्त इससे कहा । पश्चात् प्रश्न किया कि मन्दिर से क्या लाये हैं ? वइरसेन ने बदले की भावना से उसे अपने द्वारा लाये गये फूल दिखाये तथा वृद्ध को युवा रूप देना उनका महत्त्व बताया। लोभाकृष्ट होकर वेश्या ने फल लिया और जैसे ही सूंघा कि वह गधी बन गयी। वइरसेन ने उस पर सवार होकर उसे बहुत मारा तथा नगर में घुमाया। उसकी सहायता के लिए भेजे गये राजबल को वइरसेन ने यष्टि (विद्या) के द्वारा पीछे खदेड़ दिया। अन्त में कुपित होकर स्वयं राजा आया। उसने वइरसेन को ललकारा किन्तु जब दोनों आमने-सामने पहुंचे तो दोनों ने एक दूसरे को पहिचान लिया। दोनों गले लगकर मिले।
[चतुर्थ सन्धि] राजा अमरसेन के पूछने पर वइरसेन ने अपनी तीनों वस्तुओं की प्राप्ति, वेश्या की मन्मथ-मन्दिर-यात्रा, वेश्या द्वारा कपटपूर्वक आम्रफल तथा पाँवड़ी के लिये जाने और वेश्या के गधी बनाये जाने तक के सभी समाचार बताये । पश्चात् अमरसेन के कहने पर वइरसेन ने उस गधी को दुसरा फूल सँघाकर वेश्या बनाया तथा उससे अपना आम्रफल और पाँवड़ी दोनों वस्तुएँ प्राप्त की। इसके पश्चात् वे युवराज बनाये गये। उन्होंने दिग्विजय की तथा अमरसेन का एक-छत्र राज्य हुआ। वइरसेन राजा देवदत्त और देवश्री को सादर ले आये तथा उन्हें सिंहासन पर बैठाया ।
एक दिन दोनों भाइयों ने चारण मनियों को आहार कराये। उन्हें अपना पूर्वभव याद आया । वे नगर लौटे। उन्होंने चतुर्विध दान दिया तथा मुनि से धर्मोपदेश सुनकर बारह व्रत धारण किये। पूर्व भव में पाँच कौड़ियों के मोल से ली गयी द्रव्य के द्वारा की गयी पूजा के फल स्वरूप वइरसेन को आम्रफल, कथरी, पाँवड़ी और यष्टि वस्तुओं की प्राप्ति तथा स्वयं के मोक्ष प्राप्ति को भविष्यवाणी सुनकर अमरसेन ने आचार्य देवसेन की वन्दना की। दोनों भाइयों ने उनसे केशलोंच करके महाव्रत लिये। दोनों ने बारह प्रकार का तप तपा, तीर्थों की वन्दनाएँ की और विहार • करते हुए वे नन्दन वन आये।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org