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अमरमेणचरिउ
केवलणाणु लहि वि मणिसेहरु । कुसुमंजरि वउ पर्याड वि सुहयरु ॥३॥ पुणु कम्महं विणासि सिवि पत्तउ । घणवाहणु तत्थ वि संपत्तउ ॥४॥ तव - अणुसारें । सग्गि गया दुक्किय- दुहारें ॥५॥
रु सारउ । कुसुमंजलि विहाणु
भव- हारिउ ॥६॥
एरिसु । णिय सत्तेण गोविज्जइ कय जसु ॥७॥
संसार - महादुहु-खिज्जइ ॥८॥
मयणमजूसस
अणु को वि जो पुणु करिही सो विह वेस वयहु उवरि भावण विरइज्जइ । जे
घत्ता
गय-विवेय दिय सुय वि जह, वय-हले लोग जो पुणु सद्दिट्टिउ आयरई,
हुया ।
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किण लहइ सो विगय-भया ॥६- १४॥
इय महाराय सिरि अमरसेणचारिए । चउवग्ग सुकह-कहामयरसेण संभरिए । सिरि पंडियमणि माणिक्कविरइए । साधु महणा - सुय चउधरी देवराज णामं किए । सिरि अमरसेण- वइरसेण पुफ्फंजलि सुकह-पयास वणणं णाम इच्छ-परिच्छेयं सम्मत्तं ॥ संधि ॥ ६ ॥
जो वंदो देववंदो, हयकुसुमसरो, मोहदोसादि मुक्को, जो सारो विस्सयारो हय वि मरणं कोह-लोहादि चुक्को । सो मी सो णिव-सुय तियणं देवराजस्स सुक्खं, जंच्छउ मुत्ती विपत्तं णिय तणु-किहणं सव्व सुक्खं विमुक्खं ॥ ॥ आशीर्वादः ॥
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