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________________ षष्ठम परिच्छेद २४५ आत्मस्वरूप ध्याती हुई धन्य हुई ||२|| मणिशेखर ने सुखकर कुसुमांजलि व्रत प्रकट करके केवलज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् कर्मों का नाश करके शिव प्राप्त किया । घनवाहन भी वहीं उसी स्थान को ( मोक्ष ) प्राप्त हुआ ||३४|| मदनमंजूषा दुःखहारी- दुष्कृत तप के अनुसार स्वर्ग में गयी ||५|| अन्य कोई भी जो मनुष्य संसार भ्रमण को मिटानेवाले कुसुमांजलि व्रत को विधिपूर्वक किये हुए यश का गोपन करते हुए शक्ति के अनुसार करता है वह ऐसा ही होता है अर्थात् स्वर्ग या मोक्ष पाता है ।। ६-७।। व्रताचरण के साथ सांसारिक महान् दुःखों का क्षय करनेवाली भावनाएँ भी भावें ||८|| धत्ता- - व्रत के फल से विवेक रहित के भी पुत्र हुआ, रत्नशेखर आदि लोक के अग्रभाग में गये । फिर जो निर्भय होकर सम्यग्दर्शन पूर्वक आचरता है वह क्या नहीं पाता है । अर्थात् वह सब कुछ पाता है ॥६- १४ || हिन्दी अनुवाद पण्डित - मणिमाणिक्क - कवि द्वारा साधु महणा के पुत्र चौधरी के लिए रचे गये - चारों वर्ग की कहने में सरल कथाओं रूपी अमृत रस से परिपूर्ण इस अमरसेन चरित में श्री अमरसेन - वइरसेन द्वारा पुष्पाञ्जलि - सुकथा प्रकाशित करनेवाला यह छठा परिच्छेद पूर्ण हुआ || संधि ||६|| आशीर्वाद जो देव-वृन्द से वन्दित है, काम-वाण का नाशक है, मोह और दोष आदि से मुक्त तथा क्रोध और लोभ आदि से रहित है, जिस मरण के बाद जन्म लेना पड़ता है ऐसे मरण से रहित है, इन्द्रिय-विषयों को मारने में पराक्रमी है, सर्व सुखों से विमुख, श्याम वर्ण की देहवाले, जिन्होंने मुक्ति प्राप्त की वे राजा नेमिनाथ तीर्थंकर मानो जो श्रेष्ठ यति हैं उस देवराज सुख देवें ॥ आशीर्वाद || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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