SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठम परिच्छेद २४३ लेकर भोगोपभोग वाले देव स्थान (स्वर्ग) में गया ||७|| श्रेष्ठ ऋषि श्रुतकीर्ति शरीर त्याग करके देव के प्रभाव से उसी अच्युत स्वर्ग में उत्पन्न हुए ||८|| ( देव के पूर्वभव की माता ) अन्त में पद्मनाथ देव की कमला नाम की, अप्सरा होकर ( पुत्री से) मिल गयी ॥ २९ ॥ घत्ता - पद्मनाथ देव स्वर्ग से चयकर यहाँ तुम रत्नशेखर हुए हो । यह मित्र वाहन पूर्वभव का पिता और गेहिनी मदनमजूषा माता है ।। ६-१२|| [ ६-१३ ] [ रत्नशेखर की दिग्विजय, चक्रवर्ती- पद प्राप्ति एवं वैभव तथा वैराग्य-वर्णन ] भवान्तरों के पठन से ( ज्ञात होता है कि ) स्नेह टूटता नहीं, चिरकाल के स्नेह से स्नेह और अधिक बढ़ता है || १ || मुनि से इस ( व्रत ) का माहात्म्य सुनकर उस भव्य को धर्म और मोक्ष लाभ हुआ || २ || ( इसके पश्चात् ) मुनि को नमस्कार करके रत्नशेखर अपने राजभवन में आया । इसी बीच पिता ने इसे राज्य देकर तथा वन में जाकर स्वेच्छानुसार मुनि-त्रत धारण किये। मणिशेखर निस्सार पृथिवी का पालन करता है ।। ३-४ || छह खंड पृथिवी मंडल में प्रसिद्ध चक्ररत्न- आयुध उसे घर में प्राप्त हुआ ||५|| नौ निधियाँ और चौदह रत्न उत्पन्न होते हैं, विद्याधर और भूमिगोचरी राजा जाकर सेवा करते हैं || ६ || घनवाहन सेनापति के रूप में सुशोभित होता है उससे सभी शत्रु समूह भाग जाता है ||७|| उसकी छियानवे हजार रानियाँ दस कोटि पदाति और इतनी ही अश्वसेना थी || ८ || उस समय उसके चौरासी लाख रथ और इतनी ही गज- सेना थी । इस सेना के लड़ने से युद्ध में उसकी विजय हुई ||९|| घत्ता - इसने चिरकाल पृथिवी तल पर ( भोगों को ) भोग करके और इन्द्रियों के विषयों में मग्न रहकर बहुत समय पूर्व लिये कुसुमांजलि व्रत का उद्यापन किया। इसके पश्चात् निमित्त पाकर चित्त से विरक्त हते हुए इसने राज्य कंचनपुर के राजा को दे दिया ॥६-१३॥ [ ६-१४ ] [ कुसुमांजलि-व्रत माहात्म्य ] राजा मणिशेखर ने घनवाहन के साथ राग-द्वेष की दूर से उपेक्षा करके दीक्षा ली ॥१॥ मदनमजूषा उदासीनता पूर्वक तप में स्थित होकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy