SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४२ अमरसेणचरिउ रिसिवरु सुयकित्ति वि चइ विग्गहु । सुरु-पहासु जायउ तहिं सग्गहु ॥८॥ पउसणाह देवह हुउ अच्छर । कमला-अंत्ति मिल्लाकु वि अच्छर ॥९॥ घत्ता पउमणाहु तत्थहो चइ वि, रयणुसिहरु तुहुं हुवउं इह । इयस वि भणवाहणु-मित्तु तउ, कमल वि मयणमजूसगिह ॥६-१२ ॥ [६-१३ ] इय चिर-णेहें णेहु पवढइ । भवहं पठंतहं णेहु ण तुट्टइ ॥१॥ मुणि-महाउ इय णिसुणि वि भव्वो। भयउ लाहु धम्महं सिव भव्वो ॥२॥ मुणि णवेवि आयउ णिय-मंदिार । जणणे रज्जु-दिण्णु इत्थंतरि ॥३॥ वणि जाइ सइ-रिसिवउ धारिउ । महिपालइ-मणिसिहरु-णिसारिउ ॥४॥ चक्क रयणु आउह घरि-सिद्धउ । महिमंडलुच्छक्खंडु-पसिद्धउ ॥५॥ णव-णिहि चउदह-रयणइं जायई । खग्ग-भूयर-णिव सेवय जायइं ॥६॥ सेणावइ घणवाहणुच्छज्जइ । जासु पुरउ अरियण-गणु भज्जइ ॥७॥ तियच्छण्णवइ-सहासइ-सुदर । कोडिदह-वल चवल-पय-हयवर ॥८॥ चउरासी लक्खई रह-तय-गय । तेहिं भिडंतहं हुय संगरि जय ॥५॥ घत्ता चिरु महियल भुजि वि, विसणहं रंजि वि, किउ उज्जवणउ चिर वयहु । पुणु लहि वि णिमित्त, चित्ति विरत्ते, दिण्णु रज्जु कंचण-पहुहु ॥६-१३॥ [६-१४] सहं घणवाहणेण पहु दिक्खिउ । राय-दोस-दूरण उवेक्खिउ ॥१॥ मंजूसा तवि ठिय उविण्णी । णिय सरूव-झावंतिय धण्णी ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy