SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३० अमरसेणचरिउ [६-४ | जह तं वउ आयरिउ गरेसरु । तहं ससमित्तउ भाणि-जिणेसरु ॥१॥ जंवदीवहिं पूव्व विदेहहिं । सीता-सरि-दाहिण तहि सोहहिं ॥२॥ मंगल-विसए रयणसंचय-पुरि । वज्जसेणु णिव पिय अग्गेसरि ॥३॥ णाम जयावइ सा एकहि दिणि । पासायहो सिरि संठिय सामिणि ॥४॥ सहिय-समाणी जा दिसि जोवइ । णयर-मग्गि[ता]णियणइ ढोवई ॥५॥ ता पाढयवर-मंदिर-होता। पढिऊणं-करताल-हणता ॥६॥ अपरंपर-दुव्वयण-चवंता ।तणु-धूसरिय गयणु-फालंता ॥७॥ पुरयण-सिसु-णिगंथ-पेच्छंती ।सुय-जम्मणु माणसि इच्छंती ॥८॥ महदुक्खें पुणु अंसु-मुयंती। पिच्छि वि पिय राएण तुरंती ॥९॥ पुच्छिय कि कारणु तास-महियई । भासिउ आजम्म वि तहु सुहियइं ॥१०॥ सुय-जम्मणु पिच्छइ दुह-घाइय। णिव अच्छइ राणिय उम्माइय ॥११॥ ता णरवइ दह-उवसमणत्थें । जिणहरि णीय देवि-परमत्थें ॥१२॥ वीयराउ तहं अंचिउ-भावें । फेडिय रोय-सोय-संतावें ॥१३॥ पुणु सुयसायरु वंदि वि रिसिवरु । परि पुच्छई णरेसु चिताउरु ॥१४॥ घत्ता पियरणिहि-पुत्तो, वंसहं जुत्तो, होही अह णउ होइ मुणि। जंपइ चक्केसरु, जय-लच्छी वरु, होसइ णंदणुराय मुणि ॥ ६-४ ॥ [६-५] वंदेप्पिणु भक्तिए रिसह-पाय । संतोसपरायणस गिहि आय ॥१॥ कयवय दिणेण णंदणुपजाउ । सुहुबढिय-परियण-वइरि-ताउ ॥२॥ सिसुभावि पढाविउ पवर-सत्थु । पूरिय राणिहि इच्छा-पसत्थु ॥३॥ णामेण रयणसेहलु गुणाल । सुहि णिवसंतंहो जा जाइ कालु ॥४॥ ता वणकोला संपत्तयासु । खगु इक्कु णहहु ओयरि वि तासु ॥५॥ मिल्लिउ दोहि मि दसणेण-मोहु । वंच्छिउ मण-गय-चिंता-णिरोहु ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy