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________________ षष्ठम परिच्छेद [ ६-४ ] [ राजा देवसेन को अमरसेन मुनि द्वारा कथित कुसुमांजलिव्रत कथा ] हे राजन् ! जहाँ वह व्रत आचरित हुआ उसे जिनेश्वर ने संक्षेप से ( इस प्रकार ) कहा है || १|| जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी की दायीं ओर मंगलावती देश की रत्नसंचयपुरी में राजा वज्रसेन की परमप्रिय जयावती नाम की पटरानी एक दिन महल के ऊपरी भाग पर बैठकर सहेली की आगमन दिशा में, नगर-मार्ग में धूल-धूसरित देहवाले, बहु दुर्वचन कहते हुए भूमि लाँघ लांघ कर चलनेवाले मन्दिर के अध्यापक को हाथ से पोट-पीट कर समर्पित छात्रों को ले जाते हुए देखती है ||२७|| पुरजनों के नग्न बालकों को देखते हुए ( वह ) मन में पुत्र जन्म की इच्छा करती है || ८|| इसके पश्चात् महान् दुःख से आँसू बहते हुए वह तुरन्त पति के द्वारा देखी गयी और पूछी गयी कि हृदयत्रास का क्या कारण है ? उसने भी कहा कि आजन्म से सुखी हूँ || २- १०॥ पुत्र जन्म दुःखकारी दिखाई देता है । राजा उन्मादित होकर रानी से कहता है ॥ ११ ॥ | वह राजा दुःख उपशमन करने और परमार्थ के लिए रानी को जिन मन्दिर ले गया || १२ || वहाँ ( उसने) रोग, शोक और सन्ताप मिटानेवाले वीतराग की भाव- पूर्वक पूजा की || १३|| पश्चात् श्रेष्ठ ऋषि श्रुतसागर को नमस्कार करके राजा चिन्तित हृदय से पूछता है || १४ || धत्ता - हे मुनिराज ! माता-पिता की निधि, वंश के योग्य पुत्र होगा अथवा नहीं ? मुनि कहते हैं - हे राजन् ! विजयलक्ष्मी का वरण करनेवाला चक्रवर्ती पुत्र होगा ।। ६-४ ।। २३१ [ ६-५ ] राजा और रानी श्रुतसागर ऋषि के चरणों की भक्तिपूर्वक वन्दना करके संतुष्ट होकर घर आये || १ || कुछ दिनों बाद परिजनों के सुखों की वृद्धि करनेवाला और वैरियों का सन्तापकारी पुत्र उत्पन्न हुआ ||२|| शिशु अवस्था में ही उसे श्रेष्ठ शास्त्र पढ़ाये और रानी को प्रशस्त इच्छाओं की पूर्ति की ||३|| रत्नशेखर नाम से गुणवान् ( पुत्र के साथ ) सुख-पूर्वक रहते हुए सुखपूर्वक समय व्यतीत होता है ||४|| उस रत्नशेखर को वन-क्रीड़ा के समय एक विद्याधर आकाश से उतर कर प्राप्त हुआ / मिला ||५|| दोनों एक दूसरे से मिले, ( परस्पर ) दर्शन से मोह हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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