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अमरसेनचरिउ
क्षित हैं । ये दोनों ग्रन्थ अब तक अप्रकाशित ही हैं । इनका परिचय निम्न
प्रकार है ।
( अ ) अमरसेनचरिउ
इस ग्रन्थ में कुल सात सन्धियाँ, एक सौ चौदह हज़ार सात सौ इकतालीस यमक - पद हैं। सन्धियों का छन्द से तथा अन्त घत्ता छन्द से हुआ है । सन्धियों के और यमक - पद संख्या इस प्रकार हैं
सन्धि क्रमांक
कडवक संख्या
२२
१३
१३
१
ܢ
३
४
६
७
१३
२४
१४
१५
कडवक तथा एक आरम्भ ध्रुवक अनुसार कडवक
११४
१७४१
छन्द परिचय : कवि स्वयम्भू के अनुसार यमक दो पदों का होता है । उन्होंने आठ यमकों के समूह को कडवक संज्ञा दी है तथा सोलह मात्राओं वाले पद में पद्धडिया नाम का छन्द बताया है । घत्ता छन्द के प्रथम और तृतीय पाद में नौ तथा द्वितीय और चतुर्थ पाद में चौदह-चौदह मात्राओं का उल्लेख किया है । सर्वसम चतुष्पदी घत्ता छन्द के प्रत्येक चरण में बारह-बारह मात्राएँ होती हैं । जब इस छन्द के प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं तब प्रथम और द्वितीय पाद के आदि में गुरु वर्ण होता है ।"
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यमक - पद संख्या
३७६
२१४
१७७
२५०
३८७
१४५
१९५
प्रस्तुत ग्रन्थ के कडवकों में आठ से कम यमक किसी भी कडवक में नहीं हैं । एक कडवक में अधिकतम यमक संख्या चौवीस है । यमकों में पडिया छन्द व्यवहृत हुआ है । घत्ता छन्द के विविध रूप प्रयुक्त हुए हैं । ग्रन्थ के आदि और अन्त में ग्रन्थ रचना के प्रेरक चौधरी देवराज का वंश
१. जैन विद्या : अंक एक, जैन विद्या संस्थान श्रीमहावीरजी, ई० अप्रैल १९८४ प्रकाशन में देखें स्वयंभू छन्दस : एक अध्ययन शीर्षक लेख ।
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