SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१४ अमरसेणचरिउ सिर-सेहर कर-कंकण-कुडल । कडि-मेहल मुक्किय महि उज्जल ॥४॥ वर-वत्थइ-कुसमइ तणु-मंडणु । पय-णउरइ विज्जहं महुरउ मणु ॥५॥ उत्तारि वि खणेण महि मुक्कई । णं णह-मंडल णहयल चुक्कई ॥६॥ तणु-संसार-भोय णिव्विहिं । पडिगाहिस दिक्ख साधण्णा ॥७॥ सयल उपाडि वि तहं सिर-चिहुरई । भणि वि पंच-गुरु हय दुह-विहुरई ॥८॥ पुणु पिउ-माइ-सयल अंतेउर । लइय दिक्ख मुणि-पासह-सुहयर ॥९॥ संसारासारत्तु मुणेप्पिणु । थिय वहु णरवइ दिक्ख-लएप्पिणु ॥१०॥ अण्णेहिमि संगहिउसदसणु । मुणि-पणविवि तहं वहु मलफंसणु ॥११॥ केहिमि अप्पउ गरहिउ णिदि वि । गिह-वय-गिहियाइ जइ-वंदि वि ॥१२॥ णिय-णिय सत्तिए वउ-तउ लेप्पिणु । गयसणि हेलणिमुणि-पणवेप्पिणु ॥१३॥ एवहिं विण्णि वि भाय मुणीसर । तउ-तवेहि दुविसह खंडियसर ॥१४॥ घत्ता जं तणु-उववासहि, दुत्तिम्मासहि, सो सिज्जइ मण-दुह-रहिउ। अण सणु तं सुहयरु, सोसिय भव-मलु, तउ पहिल्लु मुणिणा कहिउ ।। ५-१८॥ [५-१९] सावयहं गेह कालेण लद्ध । तं असणु-लेहि मुणिवर विसुद्ध ॥१॥ आयम-भासिय रस-गिद्धि चत्त । अवमोयणु मुणु तं वीउ वुत्तु ॥२॥ रसणेदिय-पर णिरोहहि हेउ । वत्थहु संखा जं करण भेउ ॥३॥ पसरंतउ वारइ सकय-चित्तु । तें वित्ति-चाउ तउ इहु पवित्तु ॥४॥ घय-पय-दहि-सक्कर-पमुह दव्व । तह णियम करइ मुणि विगय-गव्व ॥५॥ छह रस-णउं भुजहिं मुणि-वरेंद । रस-चाउ एउ तं वउ अणिद ॥६॥ अण्णहु सयणासणु-थाण जोइ । णिवसइ णउ सोवइ भव्वु कोइ ॥७॥ पर-सप्पर लग्गहिं अंग जत्थ । सुहमह-जीवहं खउ होइ तत्थ ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy