SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२ अमरसेणचरिउ ॥७॥ गय मुणिवर रक्खि वि णिय घरेहिं । तवयरणहं उप्परि भाउ जेहिं ॥६॥ सह-पुरयण सेवहि सयण-मित्त । सावत्तिय हिय करि[भउ]णिसल्लु । जहि विहिउ कुमारहं हियइ सल्ल ॥८॥ विणि वि णिय-णिय जाण-रूढ । सह पुरयणेण तेएण पूढ ॥९॥ ते णिग्गय णयरहच्छडि मोहु । णयरज्जणाहं मणे जाइ खोहु ॥१०॥ स लहंति परोपरु चरिउ ताहं । पेच्छहु-पिच्छहु णिम्मल मणाहं ॥११॥ णव जुन्वणिच्छंडि वि सयल चित । धणु-परियणु-पुत्त-कलत्त-मित ॥१२॥ णिय णरभउ सहलु करंति भव्व । णिविण्ण-चित्तए विगय-गव्व ॥१३॥ जे हीण-सत्त-मह-लोभ-सत्त ।मिच्छा-मयरिक्खि-वसेहि खुत्त ॥१४॥ माया-मय-रस-वस वसण-भुत्त । गिह-भार विसम दहि णिच्च खुत्त ॥१५॥ पंचेदिय-विषयहं गणिय-दोण । णउ चेहि अप्पउ दुक्खरीण ॥१६॥ ते दोसहि गिहिणउ[दुहि]असंख। भवि भमिहहिं जे पुणु जोणि-लक्ख ॥१७॥ दुल्लहु णरभउ पाविवि सुधम्मु । जो ण करइ तहु इह मणुवजम्मु ॥१८॥ धण्णास-कयत्था वंदणिज्ज । ए विण्णि वि सुहि सुपसंसणिज्ज ॥१९॥ इय वणि जंतइ पुणु पुरयणेहिं । सु पसंसा विरइय णरयह तेहिं ॥२०॥ ते गय खणेण तावस-वणेण । सारिय माह वि जहिं कलरवेण ॥२॥ घत्ता तहिं मुणिवरु सारउ, मयण-विलायउ, वियणं वंदिउ णिरहु तहि । पुणु विणयं भासिउ, सुवण सुहासिउ, मा उवेक्ख सामिय करहिं ॥५-१७॥ [ ५-१८] जणण समुद्दह पार-उत्तारी । अम्हह दिक्ख देहि मुणिसारी ॥१॥ तुह पसाय णर-तउस कियत्थई । करहि चइ वि दुविहइ गिह-गंथई ॥२॥ मुणिणाहें तं णिसुणि वि सुहयर । दिण्णिय ताहिं महव्वय-दुद्धर ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy