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अमरसेनचरिउ जहिँ चरडचाड-कुसुमाल दुट्ठ । जहिं चोर-चाउ-कुसुमाल दुट्ठ दुज्जण सखुद्दखलपिसुण चिट्ठ। | दुज्जण-सखुद्द-खल-पिसुणधिट्ठ । णवि दीसहिँ कहि मिव दुहिय-हीण | णवि दीसहिं कहि महि दुहिय-हीण पेमाणरत्त सव्व जि पवीण । | पेम्माणरत्त सव्व जि पवीण । जहिँ रेहहिँ हय-पय दलिय मग्ग । जहिं रेहहिं हय-पय-दलिय-मग्गु । तंबोलरंग-गिय धरग्ग । | तंवोलरंगरंगिय धरग्गु । घत्ता
घत्ता सुहलच्छिज सायरु णं रयणायरु | सह लच्छि जसायरु णं रयणयरु वुहयणजुउ णं इंदउरु । | वहयण जउ णं इंद उरु । सत्थत्यहिं सोहिउ जणमण मोहिउ | सत्थत्यहिं सोहिउ जणमणमोहिउ णं वरणयरहँ एह गुरु ।। णं वरणयरहं एहु गुरु ।।
सन्धि १, कडवक ३ । सन्धि १, कडवक ३ प्रस्तुत साहित्यिक इस विधा से कवि माणिक्कराज का कवि रइधू को रचना पासणाहचरिउ' से परिचित होना प्रमाणित होता है। पासणाहचरिउ की पाण्डुलिपियाँ आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर और जै० श्वे० शास्त्र भण्डार, रूपनगर, दिल्ली से प्राप्त बताई गयी हैं। इनमें दिल्ली से प्राप्त पाण्डुलिपि का समय विक्रम सम्वत् १४९८ माघ वदी २ सोमवार तथा जयपुर की पाण्डुलिपि का समय विक्रम सम्वत् १७४३ माघ चन्द्रवार बताया गया है।
इन उल्लेखों से कवि माणिक्कराज का समय विक्रम संवत् १४९८ से अमरसेनचरिउ के रचना काल विक्रम संवत् १५७६ के मध्य का ज्ञात होता है। कवि को संभवतः पासणाहचरिउ से साहित्य-सजन की प्रेरणा मिली थी। उनका यह उत्साह अमरसेनचरिउ की रचना करने के पश्चात् भी बना रहा । उन्होंने विक्रम संवत् १५७९ में नागसेनचरिउ भी लिखा । इसके पश्चात् संभवतः कवि काल-कवलित हो गये । अन्यथा वे कोई अन्य रचना अवश्य लिखते। __ कवि के मूल निवास स्थान के सन्दर्भ में कवि की कृतियों का अन्तः
१. रइध ग्रन्थावलि : भाग १, ई० १९७५, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर
( महाराष्ट्र ) प्रकाशन, पृ० ४ । २. वही, भूमिका : पृ०-प्रथम । ३. अनेकान्तः वर्ष १०, किरण ४-५, पृ० १६०-१६२ ।
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