SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना पण्डित माणिक्कराज प्रस्तुत रचना के पूर्व महाकवि रइधू की रचना - पासणाहचरिउ से परिचित थे । उन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ के रुहियासपुर नगर वर्णन प्रसंग में कवि रइधू की कृति पासणाहचरिउ में आये ग्वालियरनगर-वर्णन को किञ्चित् हेर-फेर के साथ आत्मसात किया है। दोनों ग्रन्थों के अंश निम्न प्रकार हैं पासणाहचरिउ महिवढि पहागउ णं गिरिराणउ सुरहं विमणि विभउ कउसी सहिँ मंडिउ णं इहु जणिउ । पंडिउ गोपायलु णामें भणिउ ॥ अमरसेनचरिउ महिवीदि पहाणउ गुणवरिठु सुरहवि मण विभउ जगइ सुट्टु | वर तिमिसाल मंडिउ पवित्तु णंदह पंडिउ सुरपार पत्तु । रुहियासु विणा भगिउ इट्ठ अरियण जगाह हियसल्लु कठु । जहि सहहिं निरंतर जिग-णिकेय पंडुर सुवण्ण धय-सुह समेय | सट्टाल सतोरण जत्थ हम्म मण सुह संदायण णं सुकम्म । चउहट्टय चच्चर दाम जत्थ दणिवर ववहरहिं वि जहि पत्थ । मग्ग ण ठाण कोलाहल समत्थ जहि जण विसहि परिपुण्ण अत्थ । जहि आवणम्मि थिय विविह भंड कसवट्टिहिं कसियहि भम्मखंड | जहि वसह महायण सुद्धवोह णिच्चचिय पूया दाण सोह | जहिं वियरहिं वर चउवण्ण लोय पुणे पयासिय दिव्व भोय । ववहार चार संपु सव्व जहि सत्तवसण मय हीण भव्व । सोवण्णचूड मंडिय विसेस सिंगार - भार किय णिरवसेस | सिंगार भारकिय निरवसेस | सोहग्ग णिलय जिणधम्मसील सोहग्ग णिलय जिणधम्म सील जहिँ माणिणि माणमहग्छलील | | जहि माणिणि माण महग्छ लोल । सन्धि १, घत्ता २ हिँ सहहिँ णिरंतर जिण- णिकेय पंडुर धयवड - समेय । सुवण्ण सट्टाल सतोरण जत्थ हम्म मण सुह संदायण णं सुकम्म ॥ च हट्ट चक्क सट्टाम जत्थ वणिवर ववहरहिँ वि जहिं पयत्थ । मग्ग ण ठाण कोलाहल समत्थ जहि जण णिवसहिँ परिपुण्ण अत्थ । जहिँ आवणम्मि थिय विविह भंड कसव गृहिँ कसियहिँ भम्मखंड । जहिँ वसहिँ महायण सुद्धबोह णिच्चचिय या दाण-सोह | | जहिँ वियरहिँ वर चउवण्ण लोय पुणेण पयासिय दिव्व भो । ववहारपार संपण्ण सव्व जहिं सत्त वसण भय ही भव्व । सोवण्णचूड मंडियविसेस Jain Education International ७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy