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________________ अमरसेनचरिउ ___ कवि की दूसरी रचना नागसेनचरिउ' में कवि की माता का नाम 'दीवा' बताया गया है। वे जैसवाल कुल में जन्मे थे। अन्य पण्डित उनके पाण्डित्य के आगे नत थे। इन्हें उनसे सम्मान प्राप्त हुआ था। वे रुहियासपुर के निवासी थे। शास्त्रों का उन्हें अच्छा ज्ञान था। ____ गुरु-परम्परा : कवि ने अपने गुरु का नाम पद्मनन्दि लिखा है । उन्होंने उन्हें ग्रन्थ के आरम्भ में ही ( १।२।१३-१४ ) पट्ट धरंधर, वय पवीणु, तप के कारण क्षीण काय, शील की खान, निग्रन्थ, दयालु और मिष्टभाषी बताया है। ग्रन्थ का शुभारम्भ उन्होंने गुरु की वन्दना पूर्वक ही किया है। इससे कवि की गुरु-भक्ति एवं कृतज्ञता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। ___कवि अविवाहित रहे । चौधरी देवराज ने उन्हें अखण्डित शील से विभूपित कहा है ( ११६ ) जिससे उनका आजीवन ब्रह्मचारी रहना सिद्ध होता है । भट्टारक देवनन्दि की गरु के रूप में वन्दना करने से ज्ञात होता है कि कवि ने ब्रह्मचर्य से रहने का नियम पद्मनन्दि से लिया था । यही कारण है कि उन्होंने ग्रन्थ का शुभारम्भ भी भट्टारक देवनन्दि की वन्दना पूर्वक किया है। ____ मुनि देवनन्दि कवि के गुरु-भाई थे। वे रोहतक के उसी पार्श्वनाथ मन्दिर में रहते थे जहाँ कवि का आवास था। इसी मन्दिर में दो विद्वान् पण्डित और भी रहते थे ( ७।११।८-१३ ) । __ मल निवास स्थान और समय : पण्डित माणिक्कराज मूलतः कहाँ के निवासी थे ? उनकी रचनाओं से ज्ञात नहीं होता है । यह अवश्य कहा जा सकता है कि अमरसेनचरिउ की रचना करते समय वे ग्रन्थ रचना के प्रेरक चौधरी देवराज की निवास भूमि रुहियासपुर के पार्श्वनाथ मन्दिर में रहते थे ( १।३।३, १।६।१-१५ ) । १. तहि णिवसइ पंडिउ सत्थ खणि । सिरि जयसवाल कुल-कमल-तरणि ।। इक्खाकु वंस महियलि वरिठ्ठ । वुह सूरा-णंदणु सुय-गरिठ्ठ ।। उप्पण्णाउ दीवा उरि खण्णु । वुह माणिकु णामें वुहहि मण्णु ।। आमेर शास्त्र भण्डार श्रीमहावीरजी में वेष्ठन संख्या ५२१ से सुरक्षित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002769
Book TitleAmarsenchariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1991
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
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