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अमरसेणचरिउ
[५-४ ] मइ चिंतउ पडियउ दाउ महु । जो करतहं करउ ण वेइ लहु ॥१॥ सो हारइ मणुवहं जम्मु वरु । जण भणहिं होणु णिकज्ज णिरु ॥२॥ किय रासहि फुल्ल सुधाइ वेस । तं उप्परि विट्ठउ जमह वेस ॥३॥ पुक्कारिउ परियणु लंजियाई । कडवाड-सेणु-सहुं हाणिउं मई ॥४॥ तं णिणि समायउ भाय तुहुं । महु जोइ मिलिउ तुहुं पुज्जु महु ॥५॥ णिय वइयरु साहिउ वेस तुम्ह । जं जाणहि णरवइ करहि अम्ह ॥६॥ इव मुच्चहि लंजिय महु कहेण । जं लइय वत्थ तं लइ सुहेण ॥७॥ णिव-तयणु पमण्णिउ वइरसेणि । सत्तुह [अ] मुयालउ गुणणसेणि ॥८॥ बीयइ तरु-फुल्ल सुघाइ-दुटु । हुइ जं रूवें पहु लोय-विट्ठ ॥९॥ मग्गियउ कुमारहु वेय वत्थ । सहयाल-फलु वि पावलिय सुत्थ ॥१०॥ तं दिण्णइं भीयं कुमर-हत्थ । आणंदिउ राणउ कुमरु तत्थ ॥११॥ वह वायइ वज्जिय जय-सिरोहिं । णच्चंति विलासिणि मण-हरीहिं ॥१२॥ तहं जय-सद चल्लियउ राउ। णिय-वंधव-सहियउ दितु चाउ ॥१३॥ विरुयावलि भट्ट भणंत तत्थ । वणिरच्छासोह करंति वत्थ ॥१४॥ वद्धे चंदोवे तहरवार । मंगल गाइज्जइ राय-दार ॥१५॥ आसीसहि पउमिणि वार-वार । जय शंदि विद्धि पहु सहु कुमार ॥१६॥ धय रोपिय सिहरहं पंच वण्ण । वद्ध मणि-तोरण मणि-खण्ण ॥१७॥
पत्ता
वहु वाय णिणायहि, पउमिणि गोहि,
दिउ कुमरह जुयराय-पउ। मंगलु गीयतह, णारि-णडतहं,
भउ कंचणपुर-राउ धुउ ॥ ५-४ ॥
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